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बुधवार, 7 अक्तूबर 2015

चाय पर साहित्यिक चर्चा ..डा श्याम गुप्त...

                                     चाय पर चर्चा

                                  उ.प्र.हिन्दी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण पुरस्कार से सम्मानित, लखनऊ के चर्चित वरिष्ठ साहित्यकार एवं अगीत कविता विधा के संस्थापक एवं संतुलित कहानी तथा संघीय समीक्षा पद्धति के जनक.. साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’ को मैंने सोमवार ०५-१०-१५ को अपने घर पर चाय पर आमंत्रित किया | डा रंगनाथ मिश्र को साहित्यभूषण पुरस्कार मिलना अगीत-विधा की सम्पूर्ण स्वीकृति के साथ साथ, साहित्य की सभी विधाओं में पारंगत एक कर्मठ, कर्मयोगी की भांति चुपचाप, निरंतर, बिना लाग-लपेट, सभी कवियों साहित्यकारों व विधाओं के साथ सहज, समन्वय व समभाव से व्यवहार करने वाले सरल ह्रदय, उदारमना एवं हिदी साहित्य में एक दुर्लभ व विरले साहित्यकार का सम्मान है, जो हिन्दी व साहित्य का सम्मान ही है |
                               चाय की चुस्कियों के मध्य साहित्य व गीत की वर्त्तमान स्थिति एवं अगीत पर चर्चा हुई | डा सत्य ने बताया कि १९६० ई में भारतीय दर्शन के विचारों से ओत-प्रोत अगीत का सूत्रपात मैंने इसलिए किया कि अनाटक, अकविता, अकहानी जैसे आंदोलन पाश्चात्य नक़ल पर चल रहे थे | अगीत का सम्बन्ध मनुष्य की आस्था से है, भारतीयता से है, उसकी संस्कृति से है | अतः अगीत- हिन्दी व हिन्दी साहित्य के लिए विकास व उसे गति देने में सहायक व सक्षम है और इसीलिये यह विश्व भर में फ़ैल चुका है | गीत में 'अ' प्रत्यय लगा कर मैंने अगीत को संज्ञा के रूप में स्वीकार किया | अगीत, गीत नहीं के रूप में न लिया जाय | यह एक वैज्ञानिक पद्धति है जिसने संक्षिप्तता को ग्रहण किया है, सतसैया के दोहरे की भांति |
                             अगीत की सम्पूर्ण स्वीकृति के सम्बन्ध में डा सत्य ने स्पष्ट किया कि यूं तो आज अगीत विधा नई नहीं रही वह पहले ही अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर आलोकित है | आज विश्व भर में अगणित कवि व साहित्यकार अगीत कविता में रचनारत हैं | इसमें लगभग १०० से अधिक पुस्तकें रची जा चुकी हैं जिनमें श्री जगतनारायण पांडे के एवं आपके स्वयं के ( मेरे –डा श्याम गुप्त) रचित महाकाव्य व खंडकाव्य तथा अगीत का प्रथम शास्त्रीय ग्रंथ छंद विधान “अगीत साहित्य दर्पण” हैं | अभी हाल में ही बुद्धकथा पर कुमार तरल का अगीत महाकाव्य का लोकार्पण हुआ है | परन्तु पुरस्कार व सम्मान निश्चय ही किसी कवि, साहित्यकार, काव्य व विधा को नवीन गति प्रदान करते हैं | अतः इसे अगीत-विधा का भी विधिवत सम्मान समझा जायगा |
मेरे शीघ आने वाले प्रेम व श्रृंगार गीतों की कृति ‘तुम तुम और तुम’ के सन्दर्भ में गीत के प्रश्न पर उनका मत था कि गीत मृत्युंजय है | गीत परंपरा सदैव की भांति जीवित रहेगी | गीत व अगीत का अथवा नयी कविता का आपस में कोई मतभेद नहीं है न तुकांत व अतुकांत छंद या कविता में | सभी साहित्य की विविध कोटियाँ हैं, सभी आदर की पात्र हैं | मेरे सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘कुछ शायरी की बात होजाए’ के सन्दर्भ में उनका मत था कि हिन्दी ग़ज़ल को भी पुरा उर्दू नियमों व अप्रचलित फारसी उर्दू के शब्दों से मुक्त किया जाना चाहिए | प्रगति के लिए यह आवश्यक है |
                               लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा ‘डा श्याम गुप्त के व्यक्तित्व व कृतित्व’ पर की गयी शोध पर चर्चा करते हुए मैंने उन्हें बताया कि इसमें वस्तुपरक व शिल्प परक अध्ययन में मेरे अगीत महाकाव्य सृष्टि व अगीत खंडकाव्य शूर्पणखा का विशद व व्याख्यायित रूप में उल्लेख किया गया है | सृष्टि को कामायनी की भांति एक शोध-प्रबंध कहा गया है | मेरे द्वारा नवीन सृजित अगीत के विविध छंदों का उल्लेख करते हुए ‘अगीत पर अलग से शोध की आवश्यकता है’ कहा गया है | महाकाव्य प्रेमकाव्य में ‘प्रेम-अगीत’ खंड में प्रयुक्त के ‘लयबद्ध अगीत छंद’ का भी उल्लेख है| ब्रजभाषा काव्य-ब्रजबांसुरी के अगीत में लिखित द्रौपदी के पत्र को सोदाहरण प्रस्तुत किया गया है |

चित्र-- चाय पर चर्चारत --साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य व डा श्याम गुप्त ...

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