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गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

साहित्यकारों द्वारा पुरस्कार लौटाना----एक व्यर्थ का कर्म..... डा श्याम गुप्त

                                 



              साहित्यकारों जन सेवकों को राजनीतिक कृतित्वों में नहीं पड़ना चाहिए, साहित्यकार सत्यान्वेषी होता है अतः सम्पूर्ण सत्य जानने के पश्चात ही कोइ कृतित्व करना चाहिए , पूर्वाग्रह से नहीं --- मेरे विचार से ये लोग थे ही नहीं पुरस्कार के लायक ....जोड़ तोड़ से हासिल करने वालों में थे ....ये कार्य स्वयं को पुनः लोगों की नज़रों में लाना है ..स्वयं .प्रचार का एक तरीका.......क्या कैलाश सत्यार्थी भी नोबल पुरस्कार लौटायेंगे .... ....देखिये एस शंकर का आलेख ....

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