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सोमवार, 26 सितंबर 2016

दोहे "सोचो ठोस उपाय" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

बैरी है ललकारता, प्रतिदिन होकर क्रुद्ध।
हिम्मत है तो कीजिए, आकर उससे युद्ध।।
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बन्दर घुड़की दे रहा, हो करके मग़रूर।
लेकिन शासक देश के, बने हुए मजबूर।।
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गाँधी जी ने कब कहा, हो मिन्नत-फरियाद।
शठ को करवा दीजिए, दूध छठी का याद।।
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पामर करवाता यहाँ, दंगे और फसाद।
करो अन्त नापाक का, दूर करो अवसाद।।
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हाथ जोड़कर तो नहीं, हुआ देश आजाद।
क्रान्तिकारियों ने भरा, जन-गण में उन्माद।।
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आजादी के बाद से, रहा पाक ललकार।
बदले में हम कर रहे, केवल सोच-विचार।।
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आकाओं की भूल से, अब तक हैं बेचैन।
ऐसे करो उपाय अब, रहे चमन में चैन।।
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हठधर्मी से ही हुआ, निर्मित पाकिस्तान।
झेल रहा इस दंश को, अब तक हिन्दुस्तान।।
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बिगड़ा अब भी कुछ नहीं, बन्द करो अध्याय।
सही समय अब आ गया, सोचो ठोस उपाय।। 
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कदम-कदम पर जो सदा, करता है उत्पात।
उस बैरी से अब कभी, मत करना कुछ बात।।
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