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गुरुवार, 15 सितंबर 2016

गज़लोपनिषद......शुद्ध हिन्दी गज़ल...डा श्याम गुप्त ..

------एक शुद्ध हिन्दी गज़ल.....

***गज़लोपनिषद*****

एक हाथ में गीता हो और एक में त्रिशूल |
यह कर्म-धर्म ही सनातन नियम है अनुकूल |


संभूति च असम्भूति च यस्तदवेदोभय सह ,
सार और असार संग संग नहीं कुछ प्रतिकूल |

ज्ञान व संसार- माया, साथ साथ स्वीकारें ,
यही जीवन व्यवहार है संस्कृति का मूल |

पढ़ें लिखें धन कमायें ,परमार्थ हित साथ हो,
ज्ञान दर्शन धर्म श्रृद्धा के खिलाएं फूल |

किसी के भी धन व स्वत्व का नहीं करें हरण ,
चंचला कब हुई किसकी , जाएँ नहीं भूल |

यही सत जीवन का पथ, मुक्ति, ईश्वर प्राप्ति ‘श्याम,
जीव ! आनंद परम आनंद के हिंडोले झूल ||

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (16-09-2016) को "शब्द दिन और शब्द" (चर्चा अंक-2467) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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