मेरे नवीनतम प्रकाशित ब्रजभाषा
काव्य संग्रह ..."
ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ
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प्रकाशित की जायंगी ... ....
कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का
संग्रह )
रचयिता ---डा श्याम गुप्त
--- सुषमा गुप्ता
प्रस्तुत है .....भाव-अरपन तेरह...छपप्य छंद...सुमन १..जल .
आवेगी वो सदी जब जल कारन हों युद्ध ,
सदियन पहलें हू भये, जल के कारन युद्ध |
उन्नत मानुस भयो प्रकृति सह भाव बनायौ ,
कुआ बावरी ताल बने जन मन हरसायौ |
निज सुख हित, नास प्रकृति कौ यदि मानुस करतो नहीं ,
जल कारन फिर युद्ध पतन की बात सुनि सकतो कहीं ||
काकी पत्नी कौन है, काके कितेक यार,
कौन करे कब दुश्मनी, कब कर बैठे प्यार |
दुखिया सबते दीन, कबहुँ निरबल अति भारी ,
कबहुँ वही बनि जाय, महा पावरफुल नारी |
सबहिं कौं धूरि चटाय, चाहें माफिया जितनौ बड़ो,
समुझि लेउ बस दूर दरसन सीरियल पल्ले पडौ ||
फूल सी है फूलझड़ी, जोई दिए अगियाए ।
जवाब देंहटाएंबरते कन आँखी पड़े, छनन मनन छिटकाए ॥
फूलों सी फुलझरी को, अति संभाल चलाय |
हटाएंबरते कन आँखी पड़ें , खुशी फुस्स होजाय |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (01-04-2014) को "स्वप्न का संसार बन कर क्या करूँ" (चर्चा मंच-1562)"बुरा लगता हो तो चर्चा मंच पर आपकी पोस्ट का लिंक नहीं देंगे" (चर्चा मंच-1569) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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नवसम्वत्सर और चैत्र नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
कामना करता हूँ कि हमेशा हमारे देश में
परस्पर प्रेम और सौहार्द्र बना रहे।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्रीजी......
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