बुराई की उत्पत्ति एवं सार्वकालीन उपस्थिति
अभी फेसबुक पर एक टिप्पणी
थी कि ‘काश, इस दुनिया में सिर्फ सच्चाई का राज हो
जाये तो समस्या कहाँ है?’---प्रायः सदा से
ही बार बार यह कहा सुना जाता रहा है |
इस
सम्बन्ध में जैसा सभी कहते हैं, कहाजाता है कि बुराई अधिक तेजी से फैलती है |
क्योंकि हम स्वयं की बुराई नहीं देखते अपितु दूसरे की बुराई अधिक देखते हैं –
बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल देखा आपना, मुझसा बुरा न कोय |
तो
फिर बुराई सदा के लिए कैसे समाप्त होसकती है | एक पहलू यह भी है कि बुराई होगी ही
नहीं तो अच्छाई की पहचान कैसे होगी |
वस्तुतः
बुराई के सार्वस्थानिक, सार्वकालिक उपस्थिति का मूल कारण है कि जब ब्रह्मा सृष्टि
सृजन कर रहे थे उन्हें नींद आगई और इसी असावधानीवश अंधकारमय सृष्टि की उत्पत्ति
होगई जो विभिन्न बुराइयों का प्रतीक बनी | |
ब्रह्मा द्वारा मानव की कोटियों में की गयी सृष्टि----
१.-ब्रह्मा के
तमभाव देह से---आसुरी प्रव्रत्ति, इस देह के त्याग से रात्रि व अज्ञान भाव की
उत्पत्ति हुई ।
२.सोते समय सृष्टि—तिर्यक सृष्टि —जो अज्ञानी,
भोगी, इच्छा-वशी, क्रोधी, विवेक शून्य, भ्रष्ट आचरण
वाले एवं पशु-पक्षी जो पुरुषार्थ के सर्वथा
अयोग्य थे ।
३.अन्य विशिष्ट
कोटियां-- अन्धेरे में व क्रोध में -राक्षस, यक्ष आदि सदा भूखी सृष्टि --
अब जो सृष्टिकर्ता
की सृष्टि है उसकी सदा के लिए समाप्ति कैसे होसकती है |
इस प्रकार मानव रक्त में आसुरी भाव
अर्थात अति-भौतिकता जनित सुखाभिलाषा के प्रति आकर्षण के कारण विद्रोह करने की
क्षमता पुराकाल से ही चली आ रही है,
यही आसुरी भाव प्रत्येक काल में पुनः पुनः सिर उठाता रहता है ।--हर
युग में, –और कृष्ण
को कहना पडा--
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति
भारत |...
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे
युगे |
इसका अर्थ यह
नहीं कि हम स्वयं बुराई उन्मूलन हेतु कुछ करें ही नहीं, कृष्ण की ही प्रतीक्षा
करते रहें | हमें तो नियमित रूप से बुराई के विरुद्ध युद्ध लड़ते ही रहना चाहिए |
यदि एक बुरे को भी आपकी बात अच्छी लग गयी तो आपका कर्तव्य पूरा हुआ |
वैज्ञानिक
खोज---
परन्तु प्रकृति माता जो अपने पुत्र, मानव
की भांति क्रूर नहीं होसकती एवम उसे अपनी आज्ञा पर अपने अनुकूलन में सम्यग व्यवहार
से चलाने का यत्न करती आई है, ने कदम बढाया है। यह कदम मानव मस्तिष्क में एक एसे
केन्द्र को विकसित करना है जो मानव को आज से भी अधिक विवेकशील सामाज़िक, सच्चरित्र, संयमित, विचारवान,
संस्कारशील व्यवहारशील व सही अर्थों में महामानव बनायेगा। वह
केन्द्र है—मानव मस्तिष्क के प्रमस्तिष्क में विकसित भाग –बेसल नीओ कार्टेक्स (basal neo cortex)|
वैग्यानिकों प्रो.ह्यूगो स्पेत्ज़ व मस्तिष्क विज्ञानी वान इलिओनाओ के अध्ययनो के अनुसार पता चलता है कि मानव मस्तिष्क भी अभी अपूर्ण है तथा मानव के प्रमस्तिष्क के आधार भाग में एक नवीन भाग ( केन्द्र ) विकसित होरहा है, जो मानव द्वारा प्राप्त उच्च मानसिक अनुभवों, संवेगों, विचारों व कार्यों का आधार होगा।
यह नवीन विकासमान भाग प्रमस्तिष्क के अग्र व
टेम्पोरल भागों के नीचे कंकाल बक्स( क्रेनियम-cranium) के आधार पर स्थित है। इसी को बेसल नीओ कार्टेक्स ( basal
neo cortex) कहते हैं। प्राइमरी होमो सेपियन्स (प्रीमिटिव मानव) में
यह भाग विकास की कडी के अन्तिम सोपान पर ही दिखाई देता है व भ्रूण के विकास की
अन्तिम अवस्था मेंबनता है। बेसल नीओ कार्टेक्स के दोनों भागों को निकाल देने या
छेड देने पर केवल मनुष्य के चरित्र व मानसिक विकास पर प्रभाव पडता है, अन्य किसी अंग व इन्द्रिय पर नहीं । अतः यह चरित्र व भावना का केन्द्र
है।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि भविष्य में
इस नवीन केन्द्र के और अधिकाधिक विकसित होने से एक महामानव ( यदि हम स्वयम मानव
बने रहें तो) का विकास होगा ( इसे महर्षि अरविन्द के अति-मानस की विचार धारा से
तादाम्य किया जा सकता है ); जो चरित्र व व्यक्तित्व मे
मानवीय कमज़ोरियों से ऊपर होगा, आत्म संयम व मानवीयता को समझेगा, मानवीय व सामाज़िक संबंधों मे कुशल होगा और भविष्य में मानवीय भावनाओं के
विकास के महत्व को समझेगा।
और हमारा स्वप्न सच हो सके कि---- ‘काश, इस दुनिया में सिर्फ सच्चाई का राज हो
जाये ...|
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (10-08-2018) को "कर्तव्यों के बिन नहीं, मिलते हैं अधिकार" (चर्चा अंक-3059) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
dhanyvad
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