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रविवार, 15 जुलाई 2018

राजहठ, बालहठ, त्रियाहठ और मीडिया ---डा श्याम गुप्त

राजहठ, बालहठ, त्रियाहठ और मीडिया 
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             राजहठ, बालहठ, त्रियाहठ ये तीन हठ शास्त्र प्रसिद्द हैं| आजकल फेसबुक, ब्लोग्स  आदि मीडिया पर ये तीनों हठ खूब प्रश्रय पा रही हैं|
               मुफ्त लेखन एवं अभिव्यक्ति की सुविधा व स्वतंत्रता के चलते फेसबुक पर तमाम ग्रुपों की भरमार है जिनमें बच्चे अर्थात युवा वर्ग-युवक युवतियां, एवं कुछ प्रौढ़ जन भी, मैं चाहूँ ये करूँ, वो करूं कुछ भी करूँ, मेरी मर्जी.. के भाव में सब अपनी अपनी ढफली अपना अपना राग अलाप रहे हैं|
              अतः मीडिया पर तमाम अज्ञानतापूर्ण भाव, विषय, कथ्य, तथ्य से युक्त, अनर्गल बातें, द्वंद्व-द्वेष युक्त, देश-समाज-संस्कृति के विरुद्ध एवं असाहित्यिक भाव युत, कलापक्ष से हीन काव्य व साहित्य की बाढ़ आई हुई है | और अधिकाँश जन, मित्र समूह, केवल लाइक, अच्छा है, या कौन झंझट में पड़े वाह –करके निकल लेते हैं, बिना तार्किक टिप्पणी आदि के
           और साहित्य व काव्यकला का ह्रास होता जा रहा है --जिस स्थिति के लिए तुलसीदास जी ने कहा है —


हरित भूमि तृण संकुल समुझ परहि नहिं पंथ |
जिमी पाखण्ड विवाद तें लुप्त होयं सदग्रंथ
|

                ग्रुपों के एडमिन बन कर तमाम लोग स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मान, सर्वेसर्वा डिक्टेटर जैसा व्यवहार कर रहे हैं, कि हम जो कह रहे हैं वही सही है, मेरा ग्रुप मेरी मर्जी, विरोधी विचार प्रकट वाले का पत्ता काट देंगे,
====== यह राजहठ के अनुरूप है |
                           वे एडमिन  एवं उनके चंद समर्थक जो आपस में व्यक्तिगत अच्छी टिप्पणी करते हैं जिसका रचना से कोइ सम्बन्ध नहीं होता –यथा - Poetry is reflection of you...a pious soul...आदि,| उनकी रचनाओं पर विरुद्ध टिप्पणी करते ही, विषय से हटकर व्यक्तिगत आक्षेप, आरोप, अज्ञानता एवं गाली-गलौज की अभद्र भाषा पर उतर आते हैं, बिना यह जाने, समझे की टिप्पणीकार का व्यक्तित्व, ज्ञान क्या है कैसा है |
                         सभी ऐसे नहीं हैं| कुछ ग्रुप समन्वित भी हैं | अभिव्यक्ति की आजादी अच्छी बात है| हमारा युवा वर्ग एवं सदियों से दबी, प्रताणित नारी अपनी आवाज बुलंद करे, स्वयं की सार्थक अभिव्यक्ति प्रस्तुत करे, अभिनंदनीय है |
         परन्तु अति सर्वत्र वर्ज्ययेत | अधजल गगरी छलकत जाय की भाँति अल्प-ज्ञानयुत ये जन किसी के द्वारा विरोधी टिप्पणी पर तुरंत धैर्य खोकर अनुचित व्यक्तिगत टिप्पणियाँ करने लगते हैं एवं अपनी बात को येन केन प्रकारेण सही सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं |
===== यह बालहठ है |

               युवकों से अधिक युवतियां अपनी बात पर अधिक अड़ती हुई दिखाई देती हैं | किसी ने उनकी पुरुष विरोधी या समाज विरोधी रचना पर ज़रा सा कमेन्ट किया नहीं कि तुरंत रूढ़िवादी, नारी विरोधी, पुराणपंथी यहाँ तक कि कुंठित, मानसिक रोगी आदि जैसे व्यक्तिगत कमेन्ट भी मिल जायेंगे |
======= यह त्रियाहठ का रूप है |

                                 यह अति है, इस स्वरुप में आज समाज में नारी में गरिमा का अभाव है, पाश्चात्य संस्कृति व व्यवहार के प्रचलन व उनके षड्यंत्रों व स्व-संस्कृति के विरुद्ध कथनों/ प्रचार के कारण एवं स्व-संस्कृति के ज्ञान के अभाव में महिलायें शालीनता खो रही हैं| समाज, स्वसंस्कृति, गुरुजनों, शास्त्रों, विज्ञजनों की गरिमा के आदरभाव का अभाव है | पता नहीं क्यों वे तुलसी की उस प्रसिद्द चौपाई को सत्य सिद्ध करने पर तुली हैं |

        नारी का यह भाव देश, समाज, संस्कृति व मानवता के लिए घातक है | संभल जाएँ अन्यथा फिर न कहना कि बताया नहीं |

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-07-2018) को "हरेला उत्तराखण्ड का प्रमुख त्यौहार" (चर्चा अंक-3035) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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