प्रेमचंद आदि गरीबों के मसीहा एवं आजकल कवियों, लेखकों, व्यंगकारों , समाज के ठेकेदारों, नेताओं, मीडिया का प्रिय विषय है...गरीबी, भूखे को रोटी-दूध .....मंदिरों, भगवान, मूर्तियों आदि आस्थाओं को तोड़कर उंनके स्थान पर ---गरीबों, भूखों को देना चाहिए ..आदि आदि --
-----उनके लिए कुछ छंद प्रस्तुत हैं----
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मेरे कारण नहीं है कोई, इस जगत में भूखा प्यासा,
यदि इक दिन मैं रोटी देदूं , क्या पूरी हो सब अभिलाषा |
पोथी लिखी व गाल बजाये, युगों गरीब गरीब चिल्लाए,
जो जैसा अब भी वैसा ही, क्यों न प्रभु से नेह लगाये |
जिसका जैसा भाग्य-कर्म है, उसको वैसा देता राम,
हम-तुम दें, या लिखें प्रेमचंद, आये नहीं किसी के काम |
पाथर पूजें, दूध चढे तो, रहे आस्था मन में जान,
बिना आस्था, कैसे कहिये, दे गरीब को कोई दान |
धर्म आस्था को नहीं तोडिये, यह है ईश्वर का सम्मान,
नारायण सम्मान नहीं यदि, कैसे हो नर का, श्रीमान |
जो जैसा अब भी वैसा ही, क्यों न प्रभु से नेह लगाये |
जिसका जैसा भाग्य-कर्म है, उसको वैसा देता राम,
हम-तुम दें, या लिखें प्रेमचंद, आये नहीं किसी के काम |
पाथर पूजें, दूध चढे तो, रहे आस्था मन में जान,
बिना आस्था, कैसे कहिये, दे गरीब को कोई दान |
धर्म आस्था को नहीं तोडिये, यह है ईश्वर का सम्मान,
नारायण सम्मान नहीं यदि, कैसे हो नर का, श्रीमान |
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