यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 25 अगस्त 2016

तेरे कितने रूप---कृष्ण जन्माष्टमी पर----- डा श्याम गुप्त...

तेरे कितने रूप---कृष्ण जन्माष्टमी पर-----




कृष्ण जन्माष्टमी पर-----
1.
ब्रज की भूमि भई है निहाल |
सुर गन्धर्व अप्सरा गावें नाचें दे दे ताल |
जसुमति द्वारे बजे बधायो, ढफ ढफली खडताल |
पुरजन परिजन हर्ष मनावें जनम लियो नंदलाल |
आशिष देंय विष्णु शिव् ब्रह्मा, मुसुकावैं गोपाल |
बाजहिं ढोल मृदंग मंजीरा नाचहिं ब्रज के बाल |
गोप गोपिका करें आरती, झूमि बजावैं थाल |
आनंद-कन्द प्रकट भये ब्रज में विरज भये ब्रज-ग्वाल |
सुर दुर्लभ छवि निरखे लखि-छकि श्याम’ हू भये निहाल ||

2.
बाजै रे पग घूंघर बाजै रे ।
ठुमुकि ठुमुकि पग नचहि कन्हैया, सब जग नाचै रे ।
जसुमति अंगना कान्हा नाचै, तोतरि बोलन गावै ।
तीन लोक में गूंजे यह धुनि, अनहद तान गुंजावै ।
कण कण सरसे, पत्ता पत्ता, हर प्राणी हरषाये |
कैसे न दौड़ी आयं गोपियाँ घुँघरू चित्त चुराए |
तारी दे दे लगीं नचावन, पायलिया छनकैं |
ढफ ढफली खड़ताल मधुर-स्वर,कर कंकण खनकें |
गोल बनाए गोपी नाचें, बीच नचें नंदलाल |
सुर दुर्लभ लीला आनंद मन जसुमति होय निहाल |
कान्हा नाचे ठुम्मक ठुम्मक तीनों लोक नचावै रे |
मन आनंद चित श्याम’, श्याम की लीला गावै रे ||
3.
तेरे कितने रूप गोपाल ।
सुमिरन करके कान्हा मैं तो होगया आज निहाल ।
नाग-नथैया, नाच-नचैया, नटवर, नंदगोपाल ।
मोहन, मधुसूदन, मुरलीधर, मोर-मुकुट, यदुपाल ।
चीर-हरैया, रास -रचैया, रसानंद, रस पाल ।
कृष्ण-कन्हैया, कृष्ण-मुरारी, केशव, नृत्यगोपाल |
वासुदेव, हृषीकेश, जनार्दन, हरि, गिरिधरगोपाल |
जगन्नाथ, श्रीनाथ, द्वारिकानाथ, जगत-प्रतिपाल |
देवकीसुत,रणछोड़ जी,गोविन्द,अच्युत,यशुमतिलाल |
वर्णन-क्षमता कहाँ 'श्याम की, राधानंद, नंदलाल |
माखनचोर, श्याम, योगेश्वर, अब काटो भव जाल ||













चित्र--गूगल साभार 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

फ़ॉलोअर

मेरी नवीन प्रकाशित पुस्तक---दिल की बात, गज़ल संग्रह ....डॉ. श्याम गुप्त

                                 दिल की बात , गज़ल संग्रह   का   आत्मकथ्य –                            काव्य या साहित्य किसी विशेष , काल...