डेमोक्रेसी की जीत या मानव आचरण की हार
चार
शेर मिलकर एक हाथी या जन्गली भैंसे को मार गिराते हैं तो क्या आप इसे शेरों की
शानदार विजय कहेंगे या ईश्वर की
ना इंसाफी कहेंगे कि उसने हाथी को तीब्र नाखून
सहित पंजे क्यों नहीं दिए | यह जंगल नियम है डेमोक्रेसी नहीं | जंगल में ऐसा ही होता है | भोजन प्राप्ति हेतु | इस प्रक्रिया में आचरण –सत्यता का कोइ अर्थ नहीं
होता |
राजाओं के समय में एवं अंग्रेजों के
समय में भी शेर को हांका द्वारा घेर कर लाचार अवस्था में बन्दूक से मारा जाता था
और बड़ी शान से इसे शिकार कहा जाता था | यह भी जंगल क़ानून की ही भाँति था, मनुष्य
का जंगल क़ानून |
१३वीं शताब्दी में विश्व के सबसे
प्रसिद्द, शक्तिशाली, धनाढ्य एवं सुराज वाले राज्यतंत्र विजयनगर साम्राज्य को
दक्षिण भारत की छः छोटी छोटी विधर्मी रियासतों ने मिलकर धोखे से पराजित कर दिया
था, एवं ६ माह तक वह विश्व प्रसिद्द राज्य व जनता लूटी जाती रही थी |
यही आजकल होरहा है, राजनीति में –डेमोक्रेसी के नाम पर | धुर विरोधी नीतियाँ,
आचरण वाली राजनैतिक पार्टियां आपस में मिलकर, जनमत द्वारा बहुमत में आई हुई पार्टी
को किसी व्यर्थ के विन्दु विशेष पर हरा देते हैं और फिर चिल्ला चिल्ला कर
डेमोक्रेसी के बचने की दुहाई दी जाती है |
अभी हाल में ही उत्तराखंड की विधान सभा
का घटनाक्रम इसी प्रकार का घटनाक्रम है | यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी प्रश्न
चिन्ह उठाता है | आखिर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा अवैध घोषित किये गए सदस्यों
को वोटिंग से वंचित क्यों किया, जबकि राज्यपाल के आदेश की वैधता का कोर्ट से फैसला
नहीं हुआ था | फ्लोर-टेस्ट से पहले इस वैधता के प्रश्न का फैसला क्यों नहीं किया
गया, ताकि सदस्यों के वैधता/अवैधता एवं उनके वोट देने के अधिकार का सही उपयोग
होपाता | फ्लोर टेस्ट की ऐसी क्या जल्दी थी क्या राज्य कुछ दिन और राष्ट्रपति शासन
में नहीं चल सकता था, जब तक अन्य सभापति, राज्यपाल व राष्ट्रपति के आदेशों पर
फैसला नहीं होजाता |
यह कैसी डेमोक्रेस की जीत है जहां विधान
सभा के सभापति, राज्यपाल, राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट सभी के फैसले एक प्रश्नवाचक
चिन्ह लिए हुए हैं|
यह वास्तव में तो डेमोक्रेसी की हार ही है |
यदि यह डेमोक्रेसी की जीत है तो निश्चय ही मानव आचरण की हार है,
और देश, समाज, राष्ट्र के लिए क्या आवश्यक है, यह तथाकथित डेमोक्रेसी या मानव आचरण
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