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गुरुवार, 5 मई 2016

कहाँ जाती हैं गंगा में विसर्जित अस्थियाँ ?----डा श्याम गुप्त

                     कहाँ जाती हैं गंगा में विसर्जित अस्थियाँ ?


              एक दिन देवी गंगा श्री हरि से मिलने बैकुण्ठ धाम गई और उन्हें जाकर बोली," प्रभु ! मेरे जल में स्नान करने से सभी के पाप नष्ट हो जाते हैं लेकिन मैं इतने पापों का बोझ कैसे उठाऊंगी? मेरे में जो पाप समाएंगे उन्हें कैसे समाप्त करूंगी?"
             इस पर श्री हरि बोले, "गंगा! जब साधु, संत, वैष्णव आकर आप में स्नान करेंगे तो आप के सभी पाप घुल जाएंगे।"

                        सदानीरा व परमपावन गंगा नदी को प्राणियों के समस्त पापों को दूर करने वाली कहा जाता है | परन्तु वह स्वयं अपवित्र नहीं होती| प्रत्येक हिंदू व उसके परिवार की इच्छा होती है उसकी अस्थियों का विसर्जन गंगा में ही किया जाए | युगों से ये प्रथा चली आ रही है | अस्थियाँ गंगा में विसर्जित होती आरही हैं फिर भी गंगाजल पवित्र एवं पावन है। अब प्रश्न यह उठता है कि यह अस्थियां जाती कहां हैं?

                  गौमुख से गंगासागर तक खोज करने के बाद भी वैज्ञानिक भी आज तक इस प्रश्न का उत्तर इसका उत्तर नहीं खोज पाए | क्योंकि असंख्य मात्रा में अस्थियों का विसर्जन करने के बाद भी गंगाजल पवित्र एवं पावन है।

  सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार-------
 
-----मृत्यु के बाद आत्मा की शांति के लिए मृत व्यक्ति की अस्थि को गंगा में विसर्जन करना उत्तम माना गया है। ”पारद“ शब्द में -पा = विष्णु...र = रूद्र शिव और ‘द’ = ब्रह्मा के प्रतीक है। यह अस्थियां सीधे श्रीहरि के चरणों में बैकुण्ठ चली जाती हैं। जिस व्यक्ति का अंत समय गंगा के समीप आता है उसे मरणोपरांत मुक्ति मिलती है।
धार्मिक दृष्टि से----- 

-----पारद शिव का प्रतीक है और गंधक शक्ति का प्रतीक है। सभी जीव अंततः शिव और शक्ति में ही विलीन हो जाते है। पारद को भगवान् शिव का स्वरूप माना गया है और ब्रह्माण्ड को जन्म देने वाले उनके वीर्य का प्रतीक भी इसे माना जाता है। धातुओं में अगर पारद को शिव का स्वरूप माना गया है तो ताम्र को माँ पार्वती का स्वरूप। इसलिए गंगा में ताम्र के सिक्के फैकने की प्रथा है | इन दोनों के समन्वय से शिव और शक्ति का सशक्त रूप उभर कर सामने आ जाता है। ठोस पारद के साथ ताम्र को जब उच्च तापमान पर गर्म करते हैं तो ताम्र का रंग स्वर्णमय हो जाता है।

  वैज्ञानिकों के अनुसार-----

--- गंगाजल में पारा (मर्करी) विद्यमान होता है जिससे हड्डियों में उपस्थित कैल्शियम और फोस्फोरस पानी में घुल जाता है। जो जलजन्तुओं के लिए एक पौष्टिक तत्व है। हड्डियों में गंधक (सल्फर) होता है जो पारे के साथ मिलकर पारद का निर्माण करता है जो जल में उपस्थित विभिन्न रासायनिक तत्वों, मूलतः क्लोराइड व ब्रोमाइड, आयोडाइड,कार्बन, मेग्नीशियम, पोटेशियम द्वारा औषधीय गुण उत्पन्न करते हैं। मूलतः यह मरकरी सल्फाइड साल्ट (HgS) का निर्माण करते हैं। जल में उपस्थित वायु द्वारा ऑक्सीकृत होने पर पारद पुनः मुक्त हो जाता है। और अस्थियों के रासायनिक विसर्जन यह क्रम चलता रहता है | हड्डियों में बचा शेष कैल्शियम पानी को स्वच्छ रखने का काम करता है।

---- पारा एक तरल पदार्थ होता है और इसे ठोस रूप में लाने के लिए विभिन्न अन्य धातुओं जैसे कि स्वर्ण, रजत, ताम्र सहित विभिन्न जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है। इसे बहुत उच्च तापमान पर पिघला कर स्वर्ण, रज़त और ताम्र के साथ मिला कर, फिर उन्हें पिघला कर आकार दिया जाता है। जो पारद-शिव लिंग बनाने के काम लाया जाता है | ठोस पारद के साथ ताम्र को जब उच्च तापमान पर गर्म करते हैं तो ताम्र का रंग स्वर्णमय हो जाता है। इससे शिवलिंग को "सुवर्ण रसलिंग" भी कहते हैं|

---- पारा अपनी चमत्कारिक और हीलिंग प्रॉपर्टीज के लिए वैज्ञानिक तौर पर भी मशहूर है। मर्क्यूरोक्रोम हीलिंग के लिए प्रयुक्त एक मुख्य रसायन है |

------ पारद को पाश्चात्य पद्धति में उसके गुणों की वजह से फिलोस्फर्स स्टोन भी कहा जाता है। आयुर्वेद में भी इसके कई उपयोग हैं| उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, अस्थमा, डायबिटीज में पारद से बना मणिबंध (ब्रेसलेट ) पहनाया जाता है |

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