सृष्टि रचयिता ने किया, सृष्टि सृजन प्रारम्भ |
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से, संवत्सर आरम्भ ||
ऋतु बसंत मदमा रही, पीताम्बर को ओढ़ |
हरियाली साड़ी पहन, धरती हुई विभोर |
स्वर्ण थाल सा नव, प्रथम, सूर्योदय मन भाय |
धवल चांदनी चैत की, चांदी सी बिखराय |
फूलै फले नयी फसल, नवल अन्न सरसाय |
सनातनी नव-वर्ष यह, प्रकृति-नटी हरषाय |
गुड़ीपडवा, उगादी, चेटीचंड, चित्रेय |
विशु बैसाखी प्रतिपदा,संवत्सर नवरेह |
शुभ शुचि सुन्दर सुखद ऋतु, आता यह शुभ वर्ष |
धूम -धाम से मनाएं , भारतीय नव-वर्ष |
पाश्चात्य नववर्ष को, सब त्यागें श्रीमान |
भारतीय नववर्ष हित, अब छेड़ें अभियान ||
भारतीय नववर्ष एवं नवरात्रों की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (23-03-2015) को "नवजीवन का सन्देश नवसंवत्सर" (चर्चा - 1926) पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना. .....बधाई।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्रीजी, ऋषभ एवं भारती जी ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचना। प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद.मेरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है।
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