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शनिवार, 21 मार्च 2015

नव संवत्सर-----डा श्याम गुप्त ...


सृष्टि रचयिता ने किया, सृष्टि सृजन प्रारम्भ |
चैत्र  शुक्ल  प्रतिपदा से, संवत्सर  आरम्भ ||

ऋतु बसंत  मदमा रही, पीताम्बर को ओढ़ |
हरियाली  साड़ी पहनधरती हुई विभोर  |

स्वर्ण थाल सा नव, प्रथम, सूर्योदय मन भाय |
धवल  चांदनी  चैत की, चांदी सी बिखराय |

फूलै फले नयी फसल, नवल अन्न  सरसाय |
सनातनी  नव-वर्ष  यह, प्रकृति-नटी हरषाय |

गुड़ीपडवा, उगादीचेटीचंड, चित्रेय |
विशु बैसाखी प्रतिपदा,संवत्सर नवरेह |

शुभ शुचि सुन्दर सुखद ऋतु, आता यह शुभ वर्ष |
धूम -धाम  से  मनाएं भारतीय  नव-वर्ष  |

पाश्चात्य  नववर्ष  को, सब त्यागें श्रीमान |
भारतीय  नववर्ष  हित, अब छेड़ें अभियान ||

5 टिप्‍पणियां:

  1. भारतीय नववर्ष एवं नवरात्रों की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (23-03-2015) को "नवजीवन का सन्देश नवसंवत्सर" (चर्चा - 1926) पर भी होगी!
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. धन्यवाद शास्त्रीजी, ऋषभ एवं भारती जी ...

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही अच्‍छी रचना। प्रस्‍तुत करने के लिए धन्‍यवाद.मेरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है।

    जवाब देंहटाएं

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