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शुक्रवार, 21 नवंबर 2014

‘‘मेरा बस्ता कितना भारी’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

 
मेरा बस्ता कितना भारी।
बोझ उठाना है लाचारी।।

मेरा तो नन्हा सा मन है।
छोटी बुद्धि दुर्बल तन है।।

पढ़नी पड़ती सारी पुस्तक।
थक जाता है मेरा मस्तक।।

रोज-रोज विद्यालय जाना।
बड़ा कठिन है भार उठाना।।
कम्प्यूटर का युग अब आया।
इसमें सारा ज्ञान समाया।।

मोटी पोथी सभी हटा दो।
बस्ते का अब भार घटा दो।।

थोड़ी कॉपीपेन चाहिए।
हमको मन में चैन चाहिए।।

कम्प्यूटर जी पाठ पढ़ायें।
हम बच्चों का ज्ञान बढ़ाये।

इतने से चल जाये काम।
छोटा बस्ता हो आराम।।

3 टिप्‍पणियां:

  1. हाँ सच में छोटे छोटे बच्चों के बस्ते के बोझ से लदा देख मन में अजीब सी बेचैन होने लगती हैं ..कंप्यूटर युग में कुछ तो राहत मिलनी ही चाहिए ..
    ..सुन्दर प्रेरक बाल रचना ..

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