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शनिवार, 16 अगस्त 2014

प्रीति वही जो होय लला सौं....डा श्याम गुप्त



   पंचक श्याम सवैया ... ( वर्ण गणना ..पांच पंक्तियाँ )..


प्रीति  वही जो होय लला सौं जसुमति सुत कान्हा बनवारी |
रीति वही  जो निभाई लला हैं  दीननि  के दुःख में दुखहारी |
नीति वही जो सुहाई लला दई ऊधो कौं शुचि सीख सुखारी |
सीख वही दई गोपिन कौं जब चीर हरे गोवर्धन धारी |
जीत वही हो धर्म की जीत रहें संग माधव कृष्ण मुरारी ||

शक्ति वही जो दिखाई कान्ह गोवरधन गिरि उंगरी पै धारो |
युक्ति वही जो निभाई कान्ह दुःख-दारिद ग्राम व देश को टारो |
उक्ति वही जो रचाई कान्ह करो नर कर्म न फल को विचारो |
भक्ति वही जो सिखाई कान्ह जब ऊधो को ज्ञान अहं ते उबारो |
तृप्ति वही श्री कृष्ण भजे भजे राधा-गोविन्द सोई नाम पियारो ||

हारि वही हारे घनश्याम तजे रन द्वारिका धाम सिधाए |
हार वही विजयंतीमाल लगै गल श्याम के अंग सुहाए |
रार वही जो मचाई श्याम जो गोपिन-गोप सखा मन भाये |
नार वही हरि सिन्धु-अयन ताही तें नारायन कहलाये |
नारि वही वृषभानु लली जो श्याम सखा मनमीत बनाए ||

नीर वही जो बहाए सखा लखि कंटक पांय सुदामा सखा के |
पीर वही जो सही उर माहिं भाई ब्रज छांडत राधा-सखा के  |
धीर वही जो धरे उर धीर ज्यों राधा धरी गए श्याम सखा के |
तीर वही प्रन देय भुलाय कें शस्त्र गहावै जो पार्थ-सखा के |
वीर वही नर त्यागे जग हो राह में भक्ति की द्रुपदि-सखा के ||

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