भारत जैसे विश्व के प्राचीनतम देश जो विश्व में अग्रणी देश था , उसकी गौरव गाथा आज हम व हमारी वर्त्तमान पीढ़ी भूल चुकी है , अतः वर्त्तमान पीढ़ी में देशभक्ति के गौरव को , स्वाभिमान को जगाना इस कविता का उद्देश्य है... इसके कण कण में शौर्य की गाथाएं भरी हुई हैं , कण कण में इतिहास में ज्ञान का भण्डार है , फिर भी यह देश शान्ति का पुजारी है ...इस युग में भी भारत विश्व गुरु बनाने को तैयार है....
भारत माता -- श्याम सवैया छंद में ---- मेरे द्वारा सृजित यह नवीन सवैया छंद ...छः पक्न्तियों का वार्णिक छंद है |
१.
भाल रचे कंकुम केसर, निज हाथ में प्यारा तिरंगा उठाए। राष्ट्र के गीत बसें मन में,उर राष्ट्र के गान की प्रीति सजाये।
अम्बुधि धोता है पांव सदा,नैनों में विशाल गगन लहराये।
गंगा जमुना शुचि नदियों ने,मणि मुक्ताहार जिसे पहनाये।
है सुन्दर ह्रदय प्रदेश सदा, हरियाली जिसके मन भाये।
भारत मां शुभ्र ज्योत्सिनामय,सब जग के मन को हरषाये॥
-२-
हिम से मंडित इसका किरीट, गर्वोन्नत गगनांगन भाया ।
उगता जब रवि इस आंगन में, लगता है सोना बरसाया ।
मरुभूमि व सुन्दरवन से सजी, दो सुन्दर बांहों युत काया ।
वो पुरुष-पुरातन विन्ध्याचल, कटि-मेखला बना हरषाया ।
कण-कण में शूरवीर बसते, नस-नस में शौर्य भाव छाया ।
हर तृण ने इसकी हवाओं के, शूरों का परचम लहराया ।
-३-
इस ओर उठाये आंख कोई, वह शीश न फ़िर उठ पाता है ।
वह द्रष्टि न फ़िर से देख सके, इस पर जो द्रष्टि गढाता है ।
यह भारत प्रेम -पुजारी है, जग -हित ही इसे सुहाता है ।
हम विश्व-शान्ति हित के नायक, यह शान्तिदूत कहलाता है।
यह विश्व सदा से भारत को, गुरु जगत का कहता आता है।
इस युग में भी यह ज्ञान-ध्वजा, नित-नित फ़हराता जाता है।।
-४-
इतिहास बसे अनुभव-संबल, मेधा-बल,वेद-रिचाओं में।
अब रोक सकेगा कौन इसे,चल दिया आज नव-राहों में।
नित नव-तकनीक सजाये कर, विज्ञान का बल ले बाहों में।
नव-ज्ञान तरंगित इसके गुण, फ़ैले अब दशों दिशाओं में।
नित नूतन विविध भाव गूंजें, इसकी नव कला-कथाओं में।
ललचाते देव मिले जीवन, भारत की सुखद हवाओं में ॥
अम्बुधि धोता है पांव सदा,नैनों में विशाल गगन लहराये।
गंगा जमुना शुचि नदियों ने,मणि मुक्ताहार जिसे पहनाये।
है सुन्दर ह्रदय प्रदेश सदा, हरियाली जिसके मन भाये।
भारत मां शुभ्र ज्योत्सिनामय,सब जग के मन को हरषाये॥
-२-
हिम से मंडित इसका किरीट, गर्वोन्नत गगनांगन भाया ।
उगता जब रवि इस आंगन में, लगता है सोना बरसाया ।
मरुभूमि व सुन्दरवन से सजी, दो सुन्दर बांहों युत काया ।
वो पुरुष-पुरातन विन्ध्याचल, कटि-मेखला बना हरषाया ।
कण-कण में शूरवीर बसते, नस-नस में शौर्य भाव छाया ।
हर तृण ने इसकी हवाओं के, शूरों का परचम लहराया ।
-३-
इस ओर उठाये आंख कोई, वह शीश न फ़िर उठ पाता है ।
वह द्रष्टि न फ़िर से देख सके, इस पर जो द्रष्टि गढाता है ।
यह भारत प्रेम -पुजारी है, जग -हित ही इसे सुहाता है ।
हम विश्व-शान्ति हित के नायक, यह शान्तिदूत कहलाता है।
यह विश्व सदा से भारत को, गुरु जगत का कहता आता है।
इस युग में भी यह ज्ञान-ध्वजा, नित-नित फ़हराता जाता है।।
-४-
इतिहास बसे अनुभव-संबल, मेधा-बल,वेद-रिचाओं में।
अब रोक सकेगा कौन इसे,चल दिया आज नव-राहों में।
नित नव-तकनीक सजाये कर, विज्ञान का बल ले बाहों में।
नव-ज्ञान तरंगित इसके गुण, फ़ैले अब दशों दिशाओं में।
नित नूतन विविध भाव गूंजें, इसकी नव कला-कथाओं में।
ललचाते देव मिले जीवन, भारत की सुखद हवाओं में ॥
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