ईश्वर कौन हैं ? क्या हैं ?
व्यक्ति हैं ? वस्तु हैं ? या शक्ति हैं
?
आध्यात्मिक विवेचना तो बहुत पढ़ा किन्तु
शब्दों के भूल भुलैया में ईश्वर को खोज नहीं पाया ,वास्तव में समझ नहीं पाया | अब
वैज्ञानिकों के दृष्टि कोण से देखें तो उनको लगता है कि हिग्स पार्टिकल ही गॉड
पार्टिकल(ईश्वरीय कण)है अर्थात उत्पत्ति का आधार है | यदि गॉड पार्टिकल(ईश्वरीय
कण) ईश्वरीय तत्त्व का इकाई है तो इन ईश्वरीय इकाईयों का पुंज (समूह )
ईश्वर(परमात्मा )हैं और हर एक इकाई एक आत्मा है | अगर यह सच है तो ईश्वर ना तो कोई
वस्तु है और ना कोई व्यक्ति | ईश्वर निश्चित रुप में शक्ति (एनेर्जी)है | शक्ति
(एनेर्जी) का कभी विनाश नहीं होती,केवल उसका रूप परिवर्तन होता है | कभी विजली ,कभी
ध्वनि ,कभी प्रकाश इत्यादि रूप में प्रकृति में मौजूद हैं | आध्यात्मिकता कहती है
कि आत्मा नित्य है, सनातन है| आत्मा कभी मरती नहीं केवल चोला बदलकर दूसरा रूप धारण
करती है | हर शक्ति ईकाई एक आत्मा है और इन ईकाइयोंके पुंज (समूह ) परमात्मा
हैं| फिर परमात्मा या महाशक्ति का रूप क्या है ? शक्ति अदृश्य है ,निराकार है | अत:
(शक्ति पुंज) ईश्वर भी अदृश्य और निराकार है |
आत्मा से आत्मा मिलकर परमात्मा का रूप लेती है और शक्ति से शक्ति मिलकर
शक्ति पुंज (अनन्त शक्ति ) बनता है | शक्ति पुंज से अलग हो कर शक्ति इकाई(आत्मा) कोई भी रूप धारण कर सकती है | एक छोटे से
कीड़े मकोड़े से लेकर एक विशाल हाथी बन सकते हैं| देह आत्मा का बाहन है और जीवन
यात्रा समाप्त करके देह छोड़कर अनन्त शक्ति (परमात्मा )में विलय हो जाते हैं | देह
भी विखंडित होकर पञ्च तत्व में मिल जाते हैं ,इसीलिए ना शरीर का पुनर्जन्म होता
है ना शक्ति (आत्मा ) का क्योकि शक्ति कभी नष्ट नहीं होती |श्री राम चन्द्र मिशन
(चेन्नई) के अध्यक्ष श्री पार्थ सारथी राजगोपलाचारी इस सन्दर्भ में
कहते है ;
”पुनर्जन्म ही कुछ गलत सा लगता है ,
पुनर्जन्म किसका ? आत्मा का ? नहीं ;क्योंकि जैसा हम देखते हैं कि आत्मा विद्यमान है
और उसका अस्तित्व सदा रहता है | तो क्या शरीरका पुनर्जन्म होता है ? नहीं ;क्योंकि
आत्मा के इस्तेमाल के लिए पंचतत्व से बने एक नए शरीर की रचना होती है |तो फिर वह
क्या है जिसका पुनर्जन्म होता है ? मैं केवल इतना कह सकता हूँ कि पुनर्जन्म की
अवधारणा ही अनावश्यक प्रतीत होती है |”
उपरोक्त दृष्टिकोण से देखें तो किसी भी जीव या प्राणी का पुनर्जन्म नहीं
होता है | केवल शक्ति का रूप परिवर्तन होता है| आज जो ध्वनि के रूप में है ,कल वह
बिजली या प्रकाश के रूप में हो सकता है| यदि ईश्वर महाशक्ति(उर्जा पुंज ) है तो यह
उर्जा भौतिक़ रूप में जीव भी हो सकती है और निर्जीव भी ,क्योकि निर्जीव में भी
सूक्ष्मतम कण होता है जो उसकी उत्पत्ति का कारण है |धर्म में भी पत्थरों और पहाड़ों
को भगवान मान कर पूजा गया है|
आत्मा (उर्जा की इकाई ) ईश्वरीय (उर्जापुन्ज)का सुक्ष्मतम कण है | एक इकाई
(कण)से दुसरे इकाई में कोई अंतर नहीं है | यह
कण (आत्मा )महाशक्ति पुंज में स्वतंत्र विचरण करता है | यही ईश्वरीय अवस्था है ,परमानंद
की अवस्था | सभी बाधा बंधन से मुक्त है
| शायद यही है मोक्ष की अवधारणा | यहाँ भौतिक स्वरूप से कोई सम्बन्ध नहीं है | स्थूल
से विपरीत सूक्ष्म रूप है, न कोई भाव है न कोई भावना |भाव, भावना ,मन,चित्त,वुद्धि
,विचार ,आकार, प्रकृति तो स्थूल रूप का परिचायक है |
भौतिक जीव रूप में
भाव ,भावना ,मन ,चित्त ,वुद्धि ,विचार से ही सुख दुःख की अनुभूति होती है | निर्जीव भौतिक रूप इन सभी से मुक्त हैं | केवल
भौतिक जीव रूप ही दुःख –दर्द ,जन्म –मृत्यु से मुक्ति चाहता है ,निर्जीव नहीं
क्योंकि उनमे भाव,भावना और सुख-दुःख की अनुभूति नहीं होती| शायद यही कारण है कि
उर्जा (शक्ति ) की निर्जीव इकाई ज्यादा स्थायी है जीव इकाई अस्थायी है और जल्दी
जल्दी अपने कलेवर बदलती है |आत्मा (शक्ति की इकाई )की निर्जीव अवस्था में स्थिति
परिवर्तन की समस्या होती है तो यह शक्ति विकराल रूप धारण कर लेती है |पत्थर से
पत्थर टकराने पर अंगार निकलता है |परमाणु का विस्फोट भी उस शक्ति का स्थिति
परिवर्तन का विरोध प्रदर्शन है
जीवात्मा (ऊर्जा की
इकाई) शरीर का जीवन यात्रा करती है और फिर
शरीर छोड़कर अपने सूक्ष्म रूप धारणकर परमात्मा में विलीन हो जाती है | जीवात्मा सदा
है, नित्य है ,अविनाशी है | इसीलिए जीवात्मा का न जनम होता है न मरण | जन्म मरण तो
शरीर का होता है परन्तु पुनर्जन्म तो किसी का भी नहीं होता है |पुनर्जन्म के लिए वही
जीवात्मा और वही शरीर चाहिए |आत्मा न जनम लेती है न मरती है और न नया रूप के लिए
वही शरीर रहता है |इसीलिए पुनर्जन्म का अवधारणा का कोई अर्थ नहीं रह जाता है ,वह
निरर्थक हो जाता है |क्रमश:...
कालीपद "प्रसाद"
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