हिन्दी भाषा की वर्तमान स्थिति के
परिदृश्य में विभिन्न परिस्थितियों व स्थितियों पर
दृष्टि डालने के लिए पूरे परिदृश्य को निम्न कालखण्डों में देखा जा सकता है---
१.पूर्व
गांधी काल
२. गांधी युग
३. नेहरू युग
४. वर्त्तमान परिदृश्य ....
गोस्वामी तुलसीदास
जी ने सर्वप्रथम 'रामचरित
मानस' को संस्कृत की अपेक्षा
हिन्दी में रचकर हिन्दी को भारतीय जन-मानस की भाषा बनाया | हिन्दी तो उसी समय राष्ट्रभाषा होगई थी
जब घर-घर में रामचरित मानस पढी और रखी जाने लगी | भारतेंदु युग, द्विवेदी
युग में हिन्दी के प्रचार-प्रसार से देश भर में हिन्दी का
प्रभाव लगातार बढ़ता रहा यहाँ तक कि एक समय मध्य प्रांत में एवं बिहार में
हिन्दी निचले दफ्तरों व अदालतों की सरकारी भाषा बन चुकी थी यद्यपि युक्तप्रांत
में इसी प्रकार के प्रस्ताव को कुछ लोगों व तबकों के विरोध के कारण हिन्दी को
पिछड़ जाना पडा, जो बाद में १९४७ ई. में
संवैधानिक मजबूरी से हुआ |
दुर्भाग्य
वश अंग्रेज़ी राज्य के प्रसार नीति के तहत प्रारम्भिक
काल में मैकाले की नीति से रंग व रक्त में हिन्दुस्तानी किन्तु रूचि, चरित्र, बुद्धि
व चिंतन से अंग्रेजों की फौज खडी करने के लिए अंग्रेज़ी का प्रचार-प्रसार व हिन्दी
की उपेक्षा से, हिन्दी विरोधी पीढियां उत्पन्न हुईं जो
बाद में स्वदेशी शासन में भी सम्मिलित हुईं. ऐसे ही भारतीयों के शब्दों -"शिक्षा
में भारतीयों को अंग्रेजों के समकक्ष आने में करोड़ों वर्ष लगेंगे"
एवं "अब कैम्ब्रिज भारतीयों से भर गया है",- के
कारण केम्ब्रिज छोड़ कर ऑक्सफोर्ड जाना आदि क्रिया-कलापों से हिन्दी के पिछड़ने
की परिस्थितियाँ उत्पन्न हुई
गांधी जी
के आविर्भाव के युग
में मौ.अली जिन्ना के हिन्दी विरोध तथा उर्दू को मुसलमानों की भाषा की घोषणा के
प्रतिक्रया स्वरुप अधिकाँश उर्दूभाषी हिन्दुओं ने उर्दू को छोड़कर हिन्दी अपनाई
उर्दू प्रेमी कवि -साहित्यकार मुंशी प्रेमचन्द ने हिन्दी में लिखना आरम्भ कर दिया हिन्दी
को लगभग सारे राष्ट्र ने खुले दिल से स्वीकार किया |उत्तर-पश्चिम भारत पूर्ण रूप से हिन्दी के प्रभाव में था एवं दक्षिण
भारत में हिन्दी के स्कूल व कालिज खुलने लगे थे तथा पूरी तरह से प्रचार-प्रसार
आरम्भ होगया था कहीं भी हिन्दी का कोई विरोध नहीं था, बिना
किसी संरक्षण के देश भर में स्वतः हिन्दी को अपनाया गया बाद में गांधीजी के
तुष्टीकरण, मुस्लिमों में अलगावबाद व
अंग्रेजों की नीति के कारण हिन्दी के पिछड़ने का अभियान प्रारम्भ
होगया | स्वयं महात्मा गांधी ने अपने पुत्र देवदास
गांधी को दक्षिण में हिन्दी के प्रचार-प्रसार को भेजा परन्तु बाद में खिलाफत
आन्दोलन में मुसलमानों को साथ लेने के कारण वे हिन्दी की बजाय हिन्दुस्तानी
के पक्षधर होगये, और
हिन्दी के प्रचार-प्रसार को धक्का लगा |
कांग्रेस पर विदेशों में पढ़े लिखे व अंग्रेज़ी पढ़े
लोगों के वर्चस्व से नेहरू जी के आविर्भाव के युग
में हिन्दी विरोध के स्वर मुखर होने
लगे; परन्तु उर्दू के
पाकिस्तान की भाषा बनने पर संविधान सभा में बहुमत से हिन्दी को राजभाषा स्वीकार
किया गया इसके विरोध में 'बहुमत
के निर्णय को अल्पमत पर थोपने' जैसे
कथनों से हिन्दी विरोधियों को नया हथियार मिला जो बाद में हिन्दी के विरोध में
प्रयोग होता रहा |
आज़ादी के बाद
महत्वपूर्ण पदों पर अंग्रेज़ी में पारंगत व पाश्चात्य जीवन शैली वाले व्यक्तियों
के पहुँचने से जनता में यह सन्देश गया कि अंग्रेज़ी के बिना देश का काम नहीं चलेगा
यहाँ तक कि ईसाई मिशनरीज़ भी देश छोड़कर जाते-जाते रुक गईं, और हिन्दी
के स्थान पर अंग्रेज़ी स्कूलों के आने का दुश्चक्र प्रारम्भ होगया जब मुख्यमंत्रियों
के सम्मलेन में देवनागरी लिपि प्रयोग करने के पक्ष में प्रस्ताव पास हुआ
तो केन्द्रीय मंत्री मंडल ने इसे लागू नहीं किया | यद्यपि
पूरे देश में हिन्दी का कहीं विरोध नहीं था |
इस प्रकार विभिन्न एतिहासिक भूलों , तुष्टीकरण , राजनैतिक
साहस व इच्छा की कमी के चलते आज हिन्दी भाषा
का परिदृश्य यह है कि यद्यपि देश में सिर्फ २-३ % लोग अंग्रेज़ी
जानने वाले हैं तथा साक्षरता विकास के साथ-साथ हिन्दी के समाचार पत्रों आदि का
वितरण अंग्रेज़ी समाचार पत्रों की अपेक्षा काफी बढ़ रहा है परन्तु नव-साक्षरों का
सांस्कृतिक स्तर सामान्य ही है, उनमें उच्च
सांस्कृतिक कृतियाँ पढ़ने-समझने की क्षमता नहीं है इसका कारण है कि हिन्दी
राजभाषा होते हुए भी समाज के सबसे ऊपरी श्रेष्ठ व्यक्तित्व
एवं निर्णय करने वाले उच्च अधिकारी की भाषा आज भी अंग्रेज़ी है, उनके
प्रेरणा श्रोत व आदर्श पश्चिमी विचार व साहित्य है; यहाँ
तक कि तथाकथित हिन्दीवादी कवि व साहित्यकार, रचनाकार, मठाधीश
आदि भी इस रंग में रंगे हुए हैं अतः वे देश के नव-कर्णधारों को उच्च सांस्कृतिक व
साहित्यिक क्षमता प्रदान करने में असमर्थ हैं अतः हिन्दी की श्रेष्ठ
पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन धीरे धीरे बंद होकर सामान्य स्तर के सस्ते, मनोरंजन
से भरपूर अंग्रेज़ी साहित्य से प्रभावी, अनुशासित
व नक़ल के प्रकाशनों की भरमार होती जारही है चमक-धमक व
सुविधापूर्ण अंग्रेज़ी स्कूलों का मोह, हिन्दी के
प्रचार-प्रसार में बाधक है हिन्दी फिल्मों से
करोड़ों कमाने वाले अभिनेता सामान्य
बात भी अंग्रेज़ी में करते हैं, विदेशों
में पढ़ते व घूमते एवं विदेशी उत्पादों का विज्ञापन भी करते हैं रही सही कसर मुक्त
बाज़ार, मुक्त मीडिया, बड़े-बड़े
शो रूम व माल कल्चर देश में अंग्रेज़ी के प्रसार व हिन्दी
प्रसार को रोकने के लिए कटिबद्ध हैं; अतः
स्कूल के बच्चे सैतीस की बजाय थर्टी सेवन ही समझ पाते हैं |
यद्यपि समय
समय पर दिग्गज व हिन्दी प्रेमी नेताओं ने हिन्दी की पुरजोर वकालत की है एवं
हिन्दी के प्रचार-प्रसार का मुद्दा भी उठाया है परन्तु कालान्तर में कुर्सी मोह
के कारण छोड़ दिया गया |
आज अंग्रेज़ी
सिर्फ हिन्दी ही नहीं अपितु क्षेत्रीय भाषाओं को भी प्रभावित कर रही है | माताओं के अंग्रेज़ी भाषी होने से बच्चों की घरेलू भाषा अंग्रेज़ी होती
जारही है कम्प्युटर, मोबाइल, मल्टी नॅशनल
कंपनियों की बाढ़, नए -नए विदेशी अवधारणा
वाले पाठ्यक्रम, अच्छा वेतन, विदेशों
में घूमने की सुविधा आदि ने हिन्दी मोह छोड़कर अंग्रेज़ी
मोह को बढ़ावा दिया है यह सब इसलिए हुआ कि हिन्दी
राजभाषा घोषित होने के १५ वर्ष तक, और अब
सदा के लिए, सरकारी कार्य में
अंग्रेज़ी साथ-साथ बनी रहेगी, यह
शर्त लगाई गयी | विश्व में शायद ही यह स्थिति कहीं हो |
हिन्दी की वर्त्तमान स्थिति का एक कारण
यह भी है कि स्वतन्त्रता के समय हिन्दी की प्रतिस्पर्धा केवल
अंग्रेज़ी से थी, जो कालान्तर में सरकारी
नीतियों, अंग्रेज़ी समाचार पत्रों, मीडिया
व उनके अँगरेज़-परस्त मानस-पुत्रों व छुद्र राजनैतिक स्वार्थों ने इसे अहिन्दी भाषी
राज्यों के झगड़ों में परिवर्तित कर दिया, ताकि
एकता बनाए रखने के बहाने से देश भर में सदा के लिए अंग्रेज़ी को स्थान दिया जा सके |
अच्छा होगा कि हम वर्त्तमान परिदृश्यों, स्थितियों
व परिस्थितियों को समझें, मनन
करें एवं समाज की वास्तविक उन्नंति के मूलमन्त्र को ध्यान में रखें ---
" निज
भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति कौ मूल "|
मुझे सर्वोच्च न्यायालय में अंग्रेजी भाषा की बाध्यता का कारण अब तक समझ नहीं आया.....
जवाब देंहटाएंमुझे भी समझ नहीं आया ......इसे न्यायालय ही स्पष्ट कर सकता है ...शायद अहिन्दी भाषियों के तुष्टिकरण हेतु.....
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (15-09-2014) को "हिंदी दिवस : ऊंचे लोग ऊंची पसंद" (चर्चा मंच 1737) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हिन्दी दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद ...
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