ललिता
चन्द्रावली राधा का त्रिकोण --- प्रेम, तपस्या एवं योग-ब्रह्मचर्य का
उच्चतम आध्यात्मिक भाव-तत्व ----अंतिम -क़िस्त--- राधा .....
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३.राधा
एक प्रतिभावान, संपन्न व प्रियदर्शी पुरुष जिसके लिए विश्व की किसी भी महिला को वशीभूत कर लेना असंभव न हो, उसके लिए जो उसके सम्मुख प्रतिद्वंद्विता प्रस्तुत करे, मान करे, वह उसके लिए अधिक आकर्षक होगी अपेक्षाकृत जो सरलता से प्राप्य हो |
-------यद्यपि राधा का मान केवल प्राप्ति की इच्छा के लिए एक खेल नहीं है अपितु साथ में एक वात्सल्य भाव भी है क्योंकि वह जानती है कि कृष्ण के लिए क्या सबसे अच्छा है| वह कृष्ण के प्रति कोई भी अनपेक्षित अनावश्यक अन्यथा कृतित्व स्वीकार नहीं करती जो उनके लिए उत्तम नहीं है और जिससे श्रीकृष्ण को प्रसन्नता नहीं होगी |
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वृषभानु अपने साथी पडौसी राजा नंदराय व उनकी पत्नी यशोदा से मिलने होली के अवसर पर गोकुल गए वहीं पर कृष्ण व राधा की प्रथम मुलाक़ात हुई |
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------ जयदेव के अनुसार, जब श्री कृष्ण अन्य गोपियों को छोड़कर राधा के पीछे भागते हैं तो इसलिए कि राधा उस डोरी को थामे हुए रहती है जो उन्हें संसार / इच्छाओं के बंधन में बांधे रखती है |
-------- राधा कृष्ण से कहती है कि वे अपने आप को ईश्वर समझना छोड़ दें और स्वीकार करें कि उन्हें राधा की आवश्यकता है और वे उसके बिना नहीं रह सकते | यदि वे अपनी आत्मा की गहराई तक प्रेम में डूबना चाहते हैं तो उन्हें समर्पण करना ही चाहिए | भगवान श्रीकृष्ण द्वारा आराधित होने के कारण उनका नाम 'राधिका'पडा |
------- चन्द्रावली स्वयं को समर्पित तो कर सकती है परन्तु उसमें उस सम्पूर्ण समर्पण भावतत्व की कमी है जो स्वयं पर आत्म-विश्वास से उत्पन्न होता है जिससे वह श्रीकृष्ण को भी स्वयं के सम्मुख झुका सके |
\
कृष्ण जी के हाथों बछडा बन कर आये हुए असुर का वध होने की वजह से कान्हा पर गौहत्या का पाप लग गया, उसके प्रायश्चित के लिए राधा ने श्रीकृष्ण को मजबूर किया कि हम जब तक नहीं मिल सकते जब तक आप प्रायश्चित नहीं करोगे | इस पाप के प्रायश्चित के तौर पर श्रीकृष्ण ने अपनी बांसूरी से कुंड बनवाया और तीर्थ स्थानों के जल को वहां एकत्रित किया। \
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एक बार श्रीकृष्ण ने चन्द्रावली सखी से कहा कि आज अपने सम्पूर्ण श्रृंगार से मुझे सजा दो | चन्द्रावली सखी ने उनको सखी के रूप में सजा दिया| श्री कृष्ण सखी का रूप धारण करके राधाजी के पास पहुंचे|
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वस्तुतः अन्य सभी सखियाँ तो विवाहिता थीं अतः एक सीमा थी, बंधन था | राधा ही अविवाहित थी, बंधनमुक्त, स्वतंत्र, महाराज वृषभानु की पुत्री, एक राजकुमारी, सर्वगुण संपन्न |
-------बृन्दावन-अधीक्षिका, रसेश्वरी श्री राधाजी का ब्रज में, जन-जन में, घर-घर में ,मन-मन में, विश्व में, जगत में प्राधान्य हुआ।
------- राधा अपनी माता के देहांत के बाद ननिहाल में रही, उसके पिता अपनी दूसरी पत्नी के साथ वृन्दावन आगये | राधा युवावस्था में आई और स्वच्छंदता से घूमती थी| संयोग से कृष्ण भी वृन्दावन आगये | अतः यह संयोग ही था कि राधा युवावस्था में वृन्दावन आई और सब पर छागई, वह इस तरह कृष्ण की ओर खिची कि कृष्ण का मन भी मोहित होगया|
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ब्रह्म संहिता के अनुसार राधा परमात्व तत्व कृष्ण की चिर सहचरी, चिच्छित-शक्ति हैं| राधा को कहीं कहीं कृष्ण की पत्नी भी बताया गया है | ब्रह्मा ने बाल्यावस्था में ही भांडीर वन में दोनों का विवाह करा दिया था |
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एक कथा के अनुसार विष्णु ने कृष्ण अवतार लेते समय अपने परिवार के सभी देवताओं से पृथ्वी पर अवतार लेने के लिए कहा। राधा, जो चतुर्भुज विष्णु की अर्धांगिनी और लक्ष्मी के रूप में वैकुंठलोक में निवास करती थीं, राधा बनकर पृथ्वी पर आई।
------ जब राधाजी से कृष्णजी ने पूछा कि लोक-साहित्य में तुम्हारी क्या भूमिका होगी। तो राधाजी ने कहा मुझे कोई भूमिका नहीं चाहिए मैं तो आपके पीछे हूं। इसलिए कहा गया कि कृष्ण देह हैं तो राधा आत्मा हैं।
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भागवत महापुराण के प्रारंभ में व्यासजी ने लिखा है " श्रीकृष्णाय वयं नमः " अकेले कृष्ण को नहीं, श्री कृष्ण को वंदन किया गया है ।
-------सनातन धर्म में शक्ति-विशिष्ट ब्रह्म की पूजा है । निराकार ब्रह्म की पूजा नहीं हो सकती । वह मारता भी नहीं, तारता भी नहीं । वह कृपा नहीं कर सकता है । वही ब्रह्म जब शक्ति विशिष्ट बनता है, तब कृपा कर सकता है और तभी उसकी पूजा हो सकती है । 'श्री' का अर्थ है राधाजी । जगत का आधार कृष्ण हैं और कृष्ण का आधार राधा हैं |
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------- नारद पंचरात्र में आदि शक्ति राधा का एक नाम हरा या हारा भी है जिससे महामंत्र –
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे | -----का आविर्भाव हुआ |
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यह भी किम्बदन्ती है कि जन्म के समय राधा अन्धी थी और यमुना में नहाते समय जाते हुए राजा वृषभानु को सरोवर में कमल के पुष्प पर खेलती हुई मिली। शिशु अवस्था में ही श्री कृष्ण की माता यशोदा के साथ बरसाना में प्रथम मुलाक़ात हुई, पालने में सोते हुए राधा को कृष्ण द्वारा झांक कर देखते ही जन्मांध राधा की आँखें खुल गईं |
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------- रुक्मिणी व राधा ----- इसके साथ यह भी कथा है कि विदर्भ देश में भीष्मक की कुण्डिनपुर राजधानी थी। जब उनकी पुत्री रुक्मिणी का जन्म हुआजो लक्ष्मी का अवतार थी | शिशु अवस्था में ही पूतना उसे मारना चाहती थी अतः चील के रूप में उसे लेकर उड़ गयी, तो रुक्मिणी ने अपना भार अत्यधिक बढ़ाना प्रारम्भ कर दिया, और भार न सह पाने के कारण वह उसकी पकड़ से छूट गयीं| उस समय चील बरसाना के ऊपर उडी रही थी और रुक्मिणी नीचे तालाब के किनारे कमल पर गिरीं जिसे राजा वृषभानु लेकर आये और राधा के नाम से पालन किया | श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने के उपरांत रुक्मिणी के पिता भीष्मक को यह तथ्य ज्ञात हुआ तो वे राधा को अपने देश में ले आये, और रुक्मिणी का विवाह श्रीकृष्ण से हुआ |
------ रुक्मणी द्वारवत्याम तु राधा वृन्दावन वने ---मत्स्य पुराण -१३
------- राधा का विवाह कंस के एक सांसद रायाण से सुनिश्चित हुआ था परन्तु राधा ने श्रीकृष्ण के प्रेम के लिए सामाजिक बंधनों का उल्लंघन किया | कृष्ण की अनुपस्थिति में उनके प्रेमभाव में और वृद्धि हुई |
कृष्ण राधा को कभी नहीं भूले ..आदि पुराण के अनुसार श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं—
त्रिलोक्ये पृथ्वी धन्या यत्र वृंदावनम पुरी ,
तत्रापि गोपिकाः पार्थ तत्र राधाभिधा मम |
--------हे अर्जुन !तीन लोक में वृन्दावन पुरी धन्य है, जहां गोपिकाएं रहती हैं और --जहां मेरी अभिन्न प्रिया राधा रहती है |
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दोनों का पुनर्मिलन कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के अवसर पर हुआ जहां द्वारिका से कृष्ण व वृन्दावन से नन्द यसोदा व राधा गए थे| रूक्मिणी जी ने राधा जी का स्वागत सत्कार किया।
-------जब रूक्मिणी जी श्रीकृष्ण के पैर दबा रही थीं तो उन्होंने देखा कि श्रीकृष्ण के पैरों में छाले हैं। रुक्मणी जी ने विचार किया की प्रभु तो पैदल भी नहीं चलते। फिर छाला कैसे हो गया? जब रुक्मणी जी ने इस बात पर प्रभु से बहुत अनुनय-विनय किया तब श्रीकृष्ण ने बताया कि उनके चरण-कमल राधाजी के ह्रदय में विराजते हैं। रूक्मिणी जी ने राधा जी को पीने के लिए अधिक गर्म दूध दे दिया था जिसके कारण श्रीकृष्ण के पैरों में फफोले पड गए।
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एक बार श्री कृष्ण रुग्ण होगये तो उन्होंने नारद से कहा की यदि कोइ उन्हें अपने चरणों की धूलि दे तो वे स्वस्थ्य होजायंगे | रुक्मिणी सहित सभी रानियों, देवों, नारद , मुनियों सभी ने श्रीकृष्ण को अपनी चरण धूलि देकर यह महापाप उठाने से मना करा दिया|
--------जब नारद ने राधा को यह बताया तो उसने तुरंत ही अपनी चरणधूलि भिजवा दी, नारद के पूछने पर कि उन्हें महापातक का भय नहीं है, राधा का कथन था की यदि श्रीकृष्ण की कुशलता हेतु उसे हज़ार जन्मों तक भी कुम्भीपाक नरक में रहना पड़े तो स्वीकार है |
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राधा के तोते भी कृष्ण कृष्ण कहते थे | नारद जी ने श्रीकृष्ण से कहा कि जहाँ भी मैं जाता हूँ वहीं पूरे ब्रज मै हरे कृष्ण हरे कृष्ण कि गूँज सुनाई देती है । इस पर श्रीकृष्ण बोले पर मुझे तो राधे राधे नाम प्रिय है | यह सुनकर राधाजी कि आँखों से अश्रु –धारा बहने लगी, उन्होंने अपने तोतों से हरे कृष्ण कि जगह राधे राधे कहलाना शुरू कर दिया । जब सखियों ने कहा लोग तुम्हे अभिमानी कहेंगे कि तुम अपने नाम की जय बुलवाना चाहती हो । इस पर श्री जी ने कहा कि अगर मेरे प्रियतम को यही नाम पसंद है तो मैं तो यही नाम लूंगी चाहें लोग कुछ भी कहें ।
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------तो ऐसी थी राधा |--------
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कृष्ण राधा से कहते हैं कि हे सुन्दरी राधा! मैं मथुरा चला जाऊंगा, आपके भाई श्रीदामा के श्राप के कारण हमें १०० वर्षों तक बिछुड़ना होगा किन्तु हम स्वपनों में बार बार मिलेंगे | मैं यह समय द्वारिका में बिताऊंगा |
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कृष्ण के मथुरा जाने के बाद सभी थे उदास थे | उधर कृष्ण को राधा की चिंता सताने लगी, वे सोचने लगे कि जाने से पहले एक बार राधा से मिल लें इसलिए मौका पाते ही वे छिपकर वहां से निकल गए।
-------राधा-कृष्ण के इस मिलन की कहानी अद्भुत है। दोनों ना तो कुछ बोल रहे थे, ना कुछ महसूस कर रहे थे, बस चुप थे। राधा कृष्ण को ना केवल जानती थी, वरन् मन और मस्तिष्क से समझती भी थीं। कृष्ण के मन में क्या चल रहा है, वे पहले से ही भांप लेती, इसलिए शायद दोनों को उस समय कुछ भी बोलने की आवश्यक्ता नहीं पड़ी। अंतत: कृष्ण राधा को अलविदा कह वहां से लौट आए और आकर गोपियों को भी वृंदावन से उन्हें जाने की अनुमति देने के लिए मना लिया।
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अखिरकार वृंदावन कृष्ण के बिना सूना-सूना हो गया, ना कोई चहल-पहल थी और ना ही कृष्ण की लीलाओं की कोई झलक। बस सभी कृष्ण के जाने के ग़म में डूबे हुए थे।
-------परंतु दूसरी ओर राधा को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था,क्योंकि उनकी दृष्टि में कृष्ण कभी उनसे अलग हुए ही नहीं थे।
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समस्त भारतीय वाङग्मय के अघ्ययन से प्रकट होता है कि राधा प्रेम का प्रतीक थीं और कृष्ण और राधा के बीच दैहिक संबंधों की कोई भी अवधारणा शास्त्रों में नहीं है। इसलिए इस प्रेम को शाश्वत प्रेम की श्रेणी में रखते हैं। इसलिए कृष्ण के साथ सदा राधाजी को ही प्रतिष्ठा मिली। यहाँ तक की वृन्दावन में कृष्ण से अधिक राधा रानी की महत्ता है | राधाजी कृष्ण की गोलोक की अर्धांगिनी राधारानी हैं वे ईश्वरीय तत्व मी मूल आदि-शक्ति हैं |
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यद्यपि ललिता कहती है कि -------राधा को ज्ञात नहीं कि कृष्ण यहाँ से जाने वाले हैं, वे ललिता को बताते हैं राधा को नहीं कह पाते,
परन्तु ललिता नहीं जानती कि राधिका, राधा परमात्व तत्व कृष्ण की चिर सहचरी, चिच्छित-शक्ति हैं, वे मातृ-शक्ति हैं, भगवान श्रीकृष्ण के साथ सदा-सर्वदा संलग्न, उपस्थित, अभिन्न--परमात्म-अद्यात्म-शक्ति;
--------उन्हें सब ज्ञात है यह सब तो इस लीलाभूमि पर दोनों परमात्म तत्वों, लीला-युगल की लीला है जिसे सामान्य मनुष्य नहीं जान सकता |
श्रीकृष्ण राधा की अनुमति व जानकारी में ही मथुरा गए, अन्यथा क्या यमुना पार से वे कभी एक बार वृन्दावन नहीं आ सकते थे, आना ही नहीं था | लीला युगल की लीला !
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यस्या रेणुं पादयोर्विश्वभर्ता धरते मूर्धिन प्रेमयुक्त :--(अथर्ववेदीय राधिकोपनिषद )
----राधा वह शख्शियत है जिसके कमलवत चरणों की रज श्रीकृष्ण प्रेमपूर्वक अपने माथे पे लगाते हैं।
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-आदि शक्ति,नीला देवी, अदिति - राधा ---नाप्पिंनई -----
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--------तमिल साहित्य के अनुसार ऋग्वेद की तैत्रीय संहिता में .....
----- नीला देवी सूक्त ( अदिति सूक्त ) के अनुसार --विष्णु की तीन पत्नियां श्रीदेवी, भूदेवी व नीला देवी हैं |
--------अदृश्य रूप में रहने वाली नीला देवी ही आदि-शक्ति राधा हैं जिन्हें अदिति भी कहा जाता है | नीला देवी का अवतार ही राधा हैं, जिन्हें दक्षिण में नप्पिनई पुकारा जाता है, जिसे श्रीकृष्ण ने सात बैलों को हराकर जीता था | यह एक अन्य कहानी है जो केवल तमिल साहित्य में ही वर्णित है|
चित्र गूगल-----
चित्र--१-राधा
चित्र-२-कृष्ण राधा की सेवा करते हुए
चित्र-३- मथुरा गमन से पहले अंतिम मुलाकात
चित्र -४-----राधा हैं या श्याम है या राधाजू के श्याम हैं या श्याम जू की राधा हैं
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३.राधा
एक प्रतिभावान, संपन्न व प्रियदर्शी पुरुष जिसके लिए विश्व की किसी भी महिला को वशीभूत कर लेना असंभव न हो, उसके लिए जो उसके सम्मुख प्रतिद्वंद्विता प्रस्तुत करे, मान करे, वह उसके लिए अधिक आकर्षक होगी अपेक्षाकृत जो सरलता से प्राप्य हो |
-------यद्यपि राधा का मान केवल प्राप्ति की इच्छा के लिए एक खेल नहीं है अपितु साथ में एक वात्सल्य भाव भी है क्योंकि वह जानती है कि कृष्ण के लिए क्या सबसे अच्छा है| वह कृष्ण के प्रति कोई भी अनपेक्षित अनावश्यक अन्यथा कृतित्व स्वीकार नहीं करती जो उनके लिए उत्तम नहीं है और जिससे श्रीकृष्ण को प्रसन्नता नहीं होगी |
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वृषभानु अपने साथी पडौसी राजा नंदराय व उनकी पत्नी यशोदा से मिलने होली के अवसर पर गोकुल गए वहीं पर कृष्ण व राधा की प्रथम मुलाक़ात हुई |
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------ जयदेव के अनुसार, जब श्री कृष्ण अन्य गोपियों को छोड़कर राधा के पीछे भागते हैं तो इसलिए कि राधा उस डोरी को थामे हुए रहती है जो उन्हें संसार / इच्छाओं के बंधन में बांधे रखती है |
-------- राधा कृष्ण से कहती है कि वे अपने आप को ईश्वर समझना छोड़ दें और स्वीकार करें कि उन्हें राधा की आवश्यकता है और वे उसके बिना नहीं रह सकते | यदि वे अपनी आत्मा की गहराई तक प्रेम में डूबना चाहते हैं तो उन्हें समर्पण करना ही चाहिए | भगवान श्रीकृष्ण द्वारा आराधित होने के कारण उनका नाम 'राधिका'पडा |
------- चन्द्रावली स्वयं को समर्पित तो कर सकती है परन्तु उसमें उस सम्पूर्ण समर्पण भावतत्व की कमी है जो स्वयं पर आत्म-विश्वास से उत्पन्न होता है जिससे वह श्रीकृष्ण को भी स्वयं के सम्मुख झुका सके |
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कृष्ण जी के हाथों बछडा बन कर आये हुए असुर का वध होने की वजह से कान्हा पर गौहत्या का पाप लग गया, उसके प्रायश्चित के लिए राधा ने श्रीकृष्ण को मजबूर किया कि हम जब तक नहीं मिल सकते जब तक आप प्रायश्चित नहीं करोगे | इस पाप के प्रायश्चित के तौर पर श्रीकृष्ण ने अपनी बांसूरी से कुंड बनवाया और तीर्थ स्थानों के जल को वहां एकत्रित किया। \
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एक बार श्रीकृष्ण ने चन्द्रावली सखी से कहा कि आज अपने सम्पूर्ण श्रृंगार से मुझे सजा दो | चन्द्रावली सखी ने उनको सखी के रूप में सजा दिया| श्री कृष्ण सखी का रूप धारण करके राधाजी के पास पहुंचे|
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वस्तुतः अन्य सभी सखियाँ तो विवाहिता थीं अतः एक सीमा थी, बंधन था | राधा ही अविवाहित थी, बंधनमुक्त, स्वतंत्र, महाराज वृषभानु की पुत्री, एक राजकुमारी, सर्वगुण संपन्न |
-------बृन्दावन-अधीक्षिका, रसेश्वरी श्री राधाजी का ब्रज में, जन-जन में, घर-घर में ,मन-मन में, विश्व में, जगत में प्राधान्य हुआ।
------- राधा अपनी माता के देहांत के बाद ननिहाल में रही, उसके पिता अपनी दूसरी पत्नी के साथ वृन्दावन आगये | राधा युवावस्था में आई और स्वच्छंदता से घूमती थी| संयोग से कृष्ण भी वृन्दावन आगये | अतः यह संयोग ही था कि राधा युवावस्था में वृन्दावन आई और सब पर छागई, वह इस तरह कृष्ण की ओर खिची कि कृष्ण का मन भी मोहित होगया|
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ब्रह्म संहिता के अनुसार राधा परमात्व तत्व कृष्ण की चिर सहचरी, चिच्छित-शक्ति हैं| राधा को कहीं कहीं कृष्ण की पत्नी भी बताया गया है | ब्रह्मा ने बाल्यावस्था में ही भांडीर वन में दोनों का विवाह करा दिया था |
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एक कथा के अनुसार विष्णु ने कृष्ण अवतार लेते समय अपने परिवार के सभी देवताओं से पृथ्वी पर अवतार लेने के लिए कहा। राधा, जो चतुर्भुज विष्णु की अर्धांगिनी और लक्ष्मी के रूप में वैकुंठलोक में निवास करती थीं, राधा बनकर पृथ्वी पर आई।
------ जब राधाजी से कृष्णजी ने पूछा कि लोक-साहित्य में तुम्हारी क्या भूमिका होगी। तो राधाजी ने कहा मुझे कोई भूमिका नहीं चाहिए मैं तो आपके पीछे हूं। इसलिए कहा गया कि कृष्ण देह हैं तो राधा आत्मा हैं।
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भागवत महापुराण के प्रारंभ में व्यासजी ने लिखा है " श्रीकृष्णाय वयं नमः " अकेले कृष्ण को नहीं, श्री कृष्ण को वंदन किया गया है ।
-------सनातन धर्म में शक्ति-विशिष्ट ब्रह्म की पूजा है । निराकार ब्रह्म की पूजा नहीं हो सकती । वह मारता भी नहीं, तारता भी नहीं । वह कृपा नहीं कर सकता है । वही ब्रह्म जब शक्ति विशिष्ट बनता है, तब कृपा कर सकता है और तभी उसकी पूजा हो सकती है । 'श्री' का अर्थ है राधाजी । जगत का आधार कृष्ण हैं और कृष्ण का आधार राधा हैं |
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------- नारद पंचरात्र में आदि शक्ति राधा का एक नाम हरा या हारा भी है जिससे महामंत्र –
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे | -----का आविर्भाव हुआ |
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यह भी किम्बदन्ती है कि जन्म के समय राधा अन्धी थी और यमुना में नहाते समय जाते हुए राजा वृषभानु को सरोवर में कमल के पुष्प पर खेलती हुई मिली। शिशु अवस्था में ही श्री कृष्ण की माता यशोदा के साथ बरसाना में प्रथम मुलाक़ात हुई, पालने में सोते हुए राधा को कृष्ण द्वारा झांक कर देखते ही जन्मांध राधा की आँखें खुल गईं |
कन्हैया उझकि उझकि निरखे |
स्वर्ण खचित पलना चित-चितवत
केहि विधि प्रिय दरसै |
जहँ पौढ़ी वृषभानु लली,
प्रभु दरसन कौं तरसै |
पलक पांवड़े मुंदे सखी के,
नैन कमल थरकैं |
कलिका सम्पुट बंध्यो भ्रमर
ज्यों, फर फर फर फरके |
तीन लोक दरसन कौं तरसें, सो दरसन तरसै |
ये तो नैना बंद किये हैं, कान्हा बैननि
परखे |
अचरज एक भयो ताही छिन, बरसानौ सरसे |
खोली दिए दृग भानुलली,मिलि
नैन, नैन हरषे|
दृष्टिहीन माया, लखि
दृष्टा, दृष्टि खोलि निरखे|
बिन दृष्टा के दर्श श्याम,
कब जगत दीठ बरसै ||----पद डा श्याम गुप्त
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------- रुक्मिणी व राधा ----- इसके साथ यह भी कथा है कि विदर्भ देश में भीष्मक की कुण्डिनपुर राजधानी थी। जब उनकी पुत्री रुक्मिणी का जन्म हुआजो लक्ष्मी का अवतार थी | शिशु अवस्था में ही पूतना उसे मारना चाहती थी अतः चील के रूप में उसे लेकर उड़ गयी, तो रुक्मिणी ने अपना भार अत्यधिक बढ़ाना प्रारम्भ कर दिया, और भार न सह पाने के कारण वह उसकी पकड़ से छूट गयीं| उस समय चील बरसाना के ऊपर उडी रही थी और रुक्मिणी नीचे तालाब के किनारे कमल पर गिरीं जिसे राजा वृषभानु लेकर आये और राधा के नाम से पालन किया | श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने के उपरांत रुक्मिणी के पिता भीष्मक को यह तथ्य ज्ञात हुआ तो वे राधा को अपने देश में ले आये, और रुक्मिणी का विवाह श्रीकृष्ण से हुआ |
------ रुक्मणी द्वारवत्याम तु राधा वृन्दावन वने ---मत्स्य पुराण -१३
------- राधा का विवाह कंस के एक सांसद रायाण से सुनिश्चित हुआ था परन्तु राधा ने श्रीकृष्ण के प्रेम के लिए सामाजिक बंधनों का उल्लंघन किया | कृष्ण की अनुपस्थिति में उनके प्रेमभाव में और वृद्धि हुई |
कृष्ण राधा को कभी नहीं भूले ..आदि पुराण के अनुसार श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं—
त्रिलोक्ये पृथ्वी धन्या यत्र वृंदावनम पुरी ,
तत्रापि गोपिकाः पार्थ तत्र राधाभिधा मम |
--------हे अर्जुन !तीन लोक में वृन्दावन पुरी धन्य है, जहां गोपिकाएं रहती हैं और --जहां मेरी अभिन्न प्रिया राधा रहती है |
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दोनों का पुनर्मिलन कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के अवसर पर हुआ जहां द्वारिका से कृष्ण व वृन्दावन से नन्द यसोदा व राधा गए थे| रूक्मिणी जी ने राधा जी का स्वागत सत्कार किया।
-------जब रूक्मिणी जी श्रीकृष्ण के पैर दबा रही थीं तो उन्होंने देखा कि श्रीकृष्ण के पैरों में छाले हैं। रुक्मणी जी ने विचार किया की प्रभु तो पैदल भी नहीं चलते। फिर छाला कैसे हो गया? जब रुक्मणी जी ने इस बात पर प्रभु से बहुत अनुनय-विनय किया तब श्रीकृष्ण ने बताया कि उनके चरण-कमल राधाजी के ह्रदय में विराजते हैं। रूक्मिणी जी ने राधा जी को पीने के लिए अधिक गर्म दूध दे दिया था जिसके कारण श्रीकृष्ण के पैरों में फफोले पड गए।
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एक बार श्री कृष्ण रुग्ण होगये तो उन्होंने नारद से कहा की यदि कोइ उन्हें अपने चरणों की धूलि दे तो वे स्वस्थ्य होजायंगे | रुक्मिणी सहित सभी रानियों, देवों, नारद , मुनियों सभी ने श्रीकृष्ण को अपनी चरण धूलि देकर यह महापाप उठाने से मना करा दिया|
--------जब नारद ने राधा को यह बताया तो उसने तुरंत ही अपनी चरणधूलि भिजवा दी, नारद के पूछने पर कि उन्हें महापातक का भय नहीं है, राधा का कथन था की यदि श्रीकृष्ण की कुशलता हेतु उसे हज़ार जन्मों तक भी कुम्भीपाक नरक में रहना पड़े तो स्वीकार है |
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राधा के तोते भी कृष्ण कृष्ण कहते थे | नारद जी ने श्रीकृष्ण से कहा कि जहाँ भी मैं जाता हूँ वहीं पूरे ब्रज मै हरे कृष्ण हरे कृष्ण कि गूँज सुनाई देती है । इस पर श्रीकृष्ण बोले पर मुझे तो राधे राधे नाम प्रिय है | यह सुनकर राधाजी कि आँखों से अश्रु –धारा बहने लगी, उन्होंने अपने तोतों से हरे कृष्ण कि जगह राधे राधे कहलाना शुरू कर दिया । जब सखियों ने कहा लोग तुम्हे अभिमानी कहेंगे कि तुम अपने नाम की जय बुलवाना चाहती हो । इस पर श्री जी ने कहा कि अगर मेरे प्रियतम को यही नाम पसंद है तो मैं तो यही नाम लूंगी चाहें लोग कुछ भी कहें ।
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------तो ऐसी थी राधा |--------
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कृष्ण राधा से कहते हैं कि हे सुन्दरी राधा! मैं मथुरा चला जाऊंगा, आपके भाई श्रीदामा के श्राप के कारण हमें १०० वर्षों तक बिछुड़ना होगा किन्तु हम स्वपनों में बार बार मिलेंगे | मैं यह समय द्वारिका में बिताऊंगा |
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कृष्ण के मथुरा जाने के बाद सभी थे उदास थे | उधर कृष्ण को राधा की चिंता सताने लगी, वे सोचने लगे कि जाने से पहले एक बार राधा से मिल लें इसलिए मौका पाते ही वे छिपकर वहां से निकल गए।
-------राधा-कृष्ण के इस मिलन की कहानी अद्भुत है। दोनों ना तो कुछ बोल रहे थे, ना कुछ महसूस कर रहे थे, बस चुप थे। राधा कृष्ण को ना केवल जानती थी, वरन् मन और मस्तिष्क से समझती भी थीं। कृष्ण के मन में क्या चल रहा है, वे पहले से ही भांप लेती, इसलिए शायद दोनों को उस समय कुछ भी बोलने की आवश्यक्ता नहीं पड़ी। अंतत: कृष्ण राधा को अलविदा कह वहां से लौट आए और आकर गोपियों को भी वृंदावन से उन्हें जाने की अनुमति देने के लिए मना लिया।
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अखिरकार वृंदावन कृष्ण के बिना सूना-सूना हो गया, ना कोई चहल-पहल थी और ना ही कृष्ण की लीलाओं की कोई झलक। बस सभी कृष्ण के जाने के ग़म में डूबे हुए थे।
-------परंतु दूसरी ओर राधा को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था,क्योंकि उनकी दृष्टि में कृष्ण कभी उनसे अलग हुए ही नहीं थे।
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समस्त भारतीय वाङग्मय के अघ्ययन से प्रकट होता है कि राधा प्रेम का प्रतीक थीं और कृष्ण और राधा के बीच दैहिक संबंधों की कोई भी अवधारणा शास्त्रों में नहीं है। इसलिए इस प्रेम को शाश्वत प्रेम की श्रेणी में रखते हैं। इसलिए कृष्ण के साथ सदा राधाजी को ही प्रतिष्ठा मिली। यहाँ तक की वृन्दावन में कृष्ण से अधिक राधा रानी की महत्ता है | राधाजी कृष्ण की गोलोक की अर्धांगिनी राधारानी हैं वे ईश्वरीय तत्व मी मूल आदि-शक्ति हैं |
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यद्यपि ललिता कहती है कि -------राधा को ज्ञात नहीं कि कृष्ण यहाँ से जाने वाले हैं, वे ललिता को बताते हैं राधा को नहीं कह पाते,
परन्तु ललिता नहीं जानती कि राधिका, राधा परमात्व तत्व कृष्ण की चिर सहचरी, चिच्छित-शक्ति हैं, वे मातृ-शक्ति हैं, भगवान श्रीकृष्ण के साथ सदा-सर्वदा संलग्न, उपस्थित, अभिन्न--परमात्म-अद्यात्म-शक्ति;
--------उन्हें सब ज्ञात है यह सब तो इस लीलाभूमि पर दोनों परमात्म तत्वों, लीला-युगल की लीला है जिसे सामान्य मनुष्य नहीं जान सकता |
श्रीकृष्ण राधा की अनुमति व जानकारी में ही मथुरा गए, अन्यथा क्या यमुना पार से वे कभी एक बार वृन्दावन नहीं आ सकते थे, आना ही नहीं था | लीला युगल की लीला !
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यस्या रेणुं पादयोर्विश्वभर्ता धरते मूर्धिन प्रेमयुक्त :--(अथर्ववेदीय राधिकोपनिषद )
----राधा वह शख्शियत है जिसके कमलवत चरणों की रज श्रीकृष्ण प्रेमपूर्वक अपने माथे पे लगाते हैं।
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-आदि शक्ति,नीला देवी, अदिति - राधा ---नाप्पिंनई -----
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--------तमिल साहित्य के अनुसार ऋग्वेद की तैत्रीय संहिता में .....
----- नीला देवी सूक्त ( अदिति सूक्त ) के अनुसार --विष्णु की तीन पत्नियां श्रीदेवी, भूदेवी व नीला देवी हैं |
--------अदृश्य रूप में रहने वाली नीला देवी ही आदि-शक्ति राधा हैं जिन्हें अदिति भी कहा जाता है | नीला देवी का अवतार ही राधा हैं, जिन्हें दक्षिण में नप्पिनई पुकारा जाता है, जिसे श्रीकृष्ण ने सात बैलों को हराकर जीता था | यह एक अन्य कहानी है जो केवल तमिल साहित्य में ही वर्णित है|
चित्र गूगल-----
चित्र--१-राधा |
चित्र-२-कृष्ण राधा की सेवा करते हुए |
चित्र-२-कृष्ण राधा की सेवा करते हुए
चित्र-३- मथुरा गमन से पहले अंतिम मुलाकात
चित्र -४-----राधा हैं या श्याम है या राधाजू के श्याम हैं या श्याम जू की राधा हैं
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (30-07-2017) को "इंसान की सच्चाई" (चर्चा अंक 2682) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'