सूखे गुलाब ---ग़ज़ल---डा श्याम गुप्त
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ग़ज़ल----
इन शुष्क पुष्पों में आज भी जाने कितने रंग हैं |
तेरी खुशबू, ख्यालो-ख्वाब किताबों में बंद हैं |
इन शुष्क पुष्पों में आज भी जाने कितने रंग हैं |
तेरी खुशबू, ख्यालो-ख्वाब किताबों में बंद हैं |
न गुलाब पुस्तकों में अब, न अश्रु-सिंचित पत्र,
यादों को संजोयें वो दरीचे ही बंद हैं |
क्या ख्वाबो-ख्याल का फायदा, इस हाथ ले और दे,
किताबों में गुलाब, इश्क का ये भी कोइ ढंग है |
फसली है इश्क, रंग, खुशबू, पुष्प भी नकली,
ये आज की दुनिया भी कितनी हुनरमंद है |
कल की न सोच, न कल को सोच, बस आज पर ही चल,
है प्यार वही आज, अब जो तेरे संग है |
जो है सामने उसे याद रख, जो नहीं उसे तू भूल जा,
इस युग में इश्क की राह श्याम’ कैसी तंग है ||
यादों को संजोयें वो दरीचे ही बंद हैं |
क्या ख्वाबो-ख्याल का फायदा, इस हाथ ले और दे,
किताबों में गुलाब, इश्क का ये भी कोइ ढंग है |
फसली है इश्क, रंग, खुशबू, पुष्प भी नकली,
ये आज की दुनिया भी कितनी हुनरमंद है |
कल की न सोच, न कल को सोच, बस आज पर ही चल,
है प्यार वही आज, अब जो तेरे संग है |
जो है सामने उसे याद रख, जो नहीं उसे तू भूल जा,
इस युग में इश्क की राह श्याम’ कैसी तंग है ||
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-05-2017) को
जवाब देंहटाएं"लजाती भोर" (चर्चा अंक-2631)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक