वफा और प्यार की बातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं। तपन के बाद बरसातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं। मिलन होता जहाँ बिछड़ी हुई, कुछ आत्माओं का, चमकती वो हसीं रातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं।। गुलो-गुलशन की बरबादी, हमें अच्छी नहीं लगती। वतन की बढ़ती आबादी, हमें अच्छी नहीं लगती। जुल्म का सामना करने को, जिसको ढाल माना था- सितम करती वही खादी, हमें अच्छी नहीं लगती।। |
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बुधवार, 11 सितंबर 2013
"अच्छी नहीं लगतीं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बहुत ही सुन्दर सर जी
जवाब देंहटाएंachchi nahi lagti ..achchi rubai hai
जवाब देंहटाएंkya bat hai sidhe sawal ka sidha jvaab ....
जवाब देंहटाएंवफा और प्यार की बातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं।
जवाब देंहटाएंतपन के बाद बरसातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं।
मिलन होता जहाँ बिछड़ी हुई, कुछ आत्माओं का,
चमकती वो हसीं रातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं।।
बेह्तरीन अभिव्यक्ति …!!गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें.
कभी यहाँ भी पधारें।
सादर मदन
बहुत बेहतरीन..
जवाब देंहटाएं:-)
बेह्तरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना ,बधाई
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