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बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

गीत "गीत का व्याकरण" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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हार में है छिपा जीत का आचरण।
सीखिए गीत सेगीत का व्याकरण।।

बात कहने से पहले विचारो जरा
मैल दर्पण का अपने उतारो जरा
तन सँवारो जरा, मन निखारो जरा
आइने में स्वयं को निहारो जरा
दर्प का सब हटा दीजिए आवरण।
सीखिए गीत सेगीत का व्याकरण।।

मत समझना सरल, ज़िन्दग़ी की डगर
अज़नबी लोग हैं, अज़नबी है नगर
ताल में जोहते बाट मोटे मगर
मीत ही मीत के पर रहा है कतर
सावधानी से आगे बढ़ाना चरण।
सीखिए गीत सेगीत का व्याकरण।।

मनके मनकों से होती है माला बड़ी
तोड़ना मत कभी मोतियों की लड़ी
रोज़ आती नहीं है मिलन की घड़ी
तोड़ने में लगी आज दुनिया कड़ी
रिश्ते-नातों का मुश्किल है पोषण-भरण।
सीखिए गीत सेगीत का व्याकरण।।

वक्त की मार से तार टूटे नहीं
भीड़ में मीत का हाथ छूटे नहीं
खीर का अब भरा पात्र फूटे नहीं
लाज लम्पट यहाँ कोई लूटे नहीं
प्रीत के गीत से कीजिए जागरण
सीखिए गीत सेगीत का व्याकरण।।

5 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे एक प्रति "गीत का व्याकरण"पुस्तक चाहिए। कैसे प्राप्त करें?
    7900191675

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी,सर प्रणाम मुझे गीत का व्याकरण पुस्तक लेना चाहते है,
      आपका भानु जी, मेरा मोबाइल नंबर 6387206603 है,इस पर सम्पर्क है

      हटाएं
  2. बहुत अच्छी जानकारी, उम्दा प्रयास धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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