यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

पहली जनवरी------ ...डा श्याम गुप्त की कविता....

पहली जनवरी------ ...डा श्याम गुप्त की कविता....

१. देव घनाक्षरी ( ३३ वर्ण , अंत में नगण )

पहली जनवरी को मित्र हाथ मिलाके बोले ,
वेरी वेरी हेप्पी हो ये न्यू ईअर,मित्रवर |
हम बोले शीत की इस बेदर्द ऋतु में मित्र ,
कैसा नव वर्ष तन काँपे थर थर थर |
ठिठुरें खेत बाग़ दिखे कोहरे में कुछ नहीं ,
हाथ पैर हुए छुहारा सम सिकुड़ कर |
सब तो नादान हैं पर आप क्यों हैं भूल रहे,
अंगरेजी लीक पीट रहे नच नच कर ||


२. मनहरण कवित्त (१६-१५, ३१ वर्ण , अंत गुरु-गुरु.)-मगण |

अपना तो नव वर्ष चैत्र में होता प्रारम्भ ,
खेत बाग़ वन जब हरियाली छाती है |
सरसों चना गेहूं सुगंध फैले चहुँ ओर ,
हरी पीली साड़ी ओड़े भूमि इठलाती है |
घर घर उमंग में झूमें जन जन मित्र ,
नव अन्न की फसल कट कर आती है |
वही है हमारा प्यारा भारतीय नव वर्ष ,
ऋतु भी सुहानी तन मन हुलसाती है ||


३ मनहरण --
 

सकपकाए मित्र फिर औचक ही यूं बोले ,
भाई आज कल सभी इसी को मनाते हैं |
आप भला छानते क्यों अपनी अलग भंग,
अच्छे खासे क्रम में भी टांग यूं अडाते हैं |
हम बोले आपने जो बोम्बे कराया मुम्बई,
और बंगलूरू , बेंगलोर को बुलाते हैं |
कैसा अपराध किया हिन्दी नव वर्ष ने ही ,
आप कभी इसको नज़र में न लाते हैं |



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

फ़ॉलोअर

मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा--डॉ.श्याम गुप्त

  मेरे द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षा-- ============ मेरे गीत-संकलन गीत बन कर ढल रहा हूं की डा श्याम बाबू गुप्त जी लखनऊ द्वारा समीक्षा आज उ...