बाल दिवस पर ----- एक बाल कविता ---दीप दिवाली के ...
हमें याद है दीपावलि पर
हमने दीप जलाए थे |
सुन्दर सुन्दर दीप जल रहे
सबके मन को भाये थे |
दीपक से मत हाथ लगाना
कहा पिताजी ने था पर |
सुनकर उनकी बात भी मैंने,
कुछ भी इसकी की न फिकर |
लगा खेलने मैं दीपक से ,
मैंने उसे खेल समझा |
हाय एक तब गिरा पैर पर,
पैर जला और कुछ झुलसा |
नहीं आग से अब खेलूंगा
बड़ों की आज्ञा मानूंगा |
निश्चय तुरत किया फिर मैंने
अपनी कभी न ठानूंगा |
बड़ों की आज्ञा जो न मानते
उनका यही हाल होता है |
चलें पूर्वजों की आज्ञा पर
वही सदा उन्नत होता है ||
हमें याद है दीपावलि पर
हमने दीप जलाए थे |
सुन्दर सुन्दर दीप जल रहे
सबके मन को भाये थे |
दीपक से मत हाथ लगाना
कहा पिताजी ने था पर |
सुनकर उनकी बात भी मैंने,
कुछ भी इसकी की न फिकर |
लगा खेलने मैं दीपक से ,
मैंने उसे खेल समझा |
हाय एक तब गिरा पैर पर,
पैर जला और कुछ झुलसा |
नहीं आग से अब खेलूंगा
बड़ों की आज्ञा मानूंगा |
निश्चय तुरत किया फिर मैंने
अपनी कभी न ठानूंगा |
बड़ों की आज्ञा जो न मानते
उनका यही हाल होता है |
चलें पूर्वजों की आज्ञा पर
वही सदा उन्नत होता है ||
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