किरणों के तेज में,
हवा के वेग में,
एक नये उल्लास में,
उमंगो के तलाश में
तुम चलो _
ये राह भी तुम्हारा है,
ये धरा भी तुम्हारी है,
तो क्यो डरते हो बाधाओ से,
ये रुकने का नाम नही,
कर अभी कोइ आराम नही,
एक कदम बढा कर देख,
कोइ डर ना होगा,
कोइ डगर पराया ना होगा,
फिर ये अम्बर भी तुम्हारा है,
ये सागर की लहरें भी तुम्हारी है |
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सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (09-02-2015) को "प्रसव वेदना-सम्भलो पुरुषों अब" {चर्चा - 1884} पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं