मम तिमिर मधु यामिनी में प्रिय उषा की माँग भर दो
अंक सूनी सी निशा की प्रात मेरे जग भर दो ।
है निशा अवशेष जितनी लथपथी प्रिय हो खुशी से
सम्मिलन हो रात्रिचर का भाव उर में हों खुशी के ।
चेतना भरकर अलौकिक प्रेम का संचार कर दो
मम तिमिर मधु यामिनी में प्रिय उषा की माँग भर दो।
काल स्वर्णिम हो मनोहर प्रस्फुटन भी कली का
दिव्य आभा रूप की हो पान करते हों कली का ।
मिल सके आनन्द अनुपम तेज की एक किरन भर दो
मम तिमिर मधु यामिनी में प्रिय उषा की माँग भर दो।
प्रस्फुटित बहुरंग कलियाँ रूप से परिसर सजायें
मन्द चन्द सुगन्ध से ही अनवरत मन को लुभायेंं ।
भंगिमा तक पहुँच करके चाह का प्रिय रंग भर दो
मम तिमिर मधु यामिनी में प्रिय उषा की माँग भर दो।
बोलतीं चिड़ियाँ मधुर मधु ऋतु वसन्ती मोहिनीं है
चंद तारे गगन में हैं मंद पड़ती चाँदनी है।
अरुणिमा ले अर्क अब तो भोर का प्रिय काल कर दो
मम तिमिर मधु यामिनी में प्रिय उषा की माँग भर दो।
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