सखी री ! नव बसन्त आये ...बसन्त गीत
सखी री ! नव बसन्त आये ।।
जन जन में,
जन जन, मन मन में,
यौवन यौवन छाये ।
सखी री ! नव बसंत आये ।।
पुलकि पुलकि सब अंग सखी री ,
हियरा उठे उमंग ।
आये ऋतुपति पुष्प-बान ले,
आये रतिपति काम-बान ले,
मनमथ छायो अंग ।
होय कुसुम-शर घायल जियरा ,
अंग अंग रस भर लाये ।
सखी री ! नव बसंत आये ।।
तन मन में बिजुरी की थिरकन,
बाजे ताल-मृदंग ।
अंचरा खोले रे भेद जिया के,
यौवन उठे तरंग ।
गलियन गलियन झांझर बाजे ,
अंग अंग हरषाए ।
प्रेम शास्त्र का पाठ पढ़ाने....
काम शास्त्र का पाठ पढ़ाने,
ऋषि अनंग आये ।
सखी री ! नव बसंत आये
।।
चित्र--गूगल साभार
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (02-02-2014) को अब छोड़ो भी.....रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1511 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
dhanyvaad shastree jee...
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