विनीता अग्निहोत्री की कविता
अगस्त पाँच को दीवाली है मनने वाली
फिर से भूमि अयोध्या की है सजने वाली
खूब बजेंगे शंख-ढोल, मंजीरे-थाली
चातक मोर-पपीहा धुन गायेंगे मतवाली
झूम उठेगी फिर सरयू के तट हरियाली
अब शुभ वेला की तारीख न जाये टाली
गाओ नाचों और बजाओ दिल से ताली
दीप जलेंगे खुशियों के तो हो जायेगी दीवाली
साधू-सन्त मिटा देंगे अब रजनी काली
बोलो जय श्रीराम पियो मधु रस की प्याली
- विनीता अग्निहोत्री
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रविवार, 2 अगस्त 2020
अगस्त पाँच को दीवाली मनने वाली (विनीता अग्निहोत्री)
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जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जय श्री राम
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