मेरी स्वर्गीय मित्र निधि जैन ने मेरे उपन्यास देवलदेवी पर ये समीक्षा लिखी थी। अब जबकि इस उपन्यास का दूसरा संस्करण आया है तो मुझे निधि की कमी बहुत खल रही है। देवलदेवी की प्रीबुकिंग अमेज़न पर शुरू है।
फेसबुक और whatsapp पर जुड़ने के बाद से मेरा मोबाइल हाथों से छोड़ना अत्यंत दुष्कर हुआ है। घर के काम करते हुए भी बीच बीच में मोबाइल उठा कर देख ही लेती हूँ।
ऐसे में किताबें पढ़ना मेरे लिए चुनौती है। कुछ 15 दिन पहले 4 किताबें खरीदीं थीं जिनमे से अब तक बस खलील जिब्रान की ही एक कहानी पढ़ी।
ऑनलाइन बुक्स के जरिये मैंने दिसम्बर में प्रेमा,श्रीकांत दो उपन्यास और कई सारी कहानियाँ पढ़ीं..तभी दो बुक्स खरीदीं थीं गोदान और प्रेमाश्रम..गोदान तो तो दिलचस्प लगी..खत्म होने के बाद भी यही लगता रहा कि अभी और होता तो पढ़ा जाता। पर यहाँ दो महीने से प्रेमाश्रम खत्म करने की सोच रही हूँ पर नही हो पाता। वैसे भी इतनी मोटी मोटी किताबें और उपन्यास देखकर ही हाथ पाँव फूल जाते हैं मेरे
ऐसे में एक लेखक महोदय मुझे इनबॉक्स में अपने एक उपन्यास की पीडीएफ फ़ाइल देते हैं और बोलते हैं पढ़कर प्रतिक्रिया दीजियेगा मन में तो आया कि कुछ बक दूँ.. पर घर आये मेहमान की इज्जत भी करनी चाहिए तो उनको बोल दिया 'जी जरूर'..फिर सोचा देखूं तो क्या है इसमें..पीडीएफ खोली #देवलदेवी दो तीन पेज नीचे आई 'उफ़ ये तो इतिहास से सम्बंधित था..'नो वे,किसी कीमत पर नही पढूंगी' सोच लिया था.. एक फ्रेंड Vivek को भी भेज दिया कि शायद ये पढ़कर प्रतिक्रिया देगा तो वो ही लिख दूंगी ..
खैर शाम को fb पर कोई ख़ास नोटिफिकेशन नही थे तो सोचा थोडा नावेल देख ही लिया जाए.. आंय..ये क्या.. शुरू हुआ तो खत्म करने तक सांस भी न ली.. छोटा था रुचिकर था.. भाषा सुंदर.. कथानक ऐतिहासिक.. नायिका में ठोस नायिका वाले गुण.. जिसमे स्वधर्मपालन की जिजीविषा बचपन से ही दिखती है। मुझे बहुत पसंद आया यह उपन्यास इसलिए खत्म करने के बाद तुरंत लिख रही हूँ।
लेखक समीर ओह्ह सॉरी Sudheer Maurya को बहुत बहुत बधाई.. पहली बार किसी लेखक को मुझसे एक उपन्यास वो भी एक सिटींग में खत्म करवाने के लिए भी बधाई.
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