डा रंगनाथ मिश्र सत्य |
शिक्षक दिवस पर विशेष – गुरु
और भारत ----
भारतवर्ष में गुरु की सदैव ही विशिष्ट महत्ता रही है | गुरु अर्थात जो कोइ
विशिष्ट दिशा दे समाज, राष्ट्र को, विश्व को, मानवता को, विशिष्ट दिशा का प्रवर्तक
हो |
विश्व व मानवता के आदिगुरु भगवान शिव हैं जिन्होंने वेदों की रचना
एवं समन्वय किया और मानवता को सौंपा| अक्षर, शब्द, बोली व भाषा, गीत-संगीत,
साहित्य सहित प्रत्येक ज्ञान व विद्या के प्रवर्तक - शिव ही आदिगुरु हैं
तत्पश्चात देवगुरु ब्रहस्पति व दैत्यगुरु उशना काव्य या शुक्राचार्य हैं मानव समाज की दो विशिष्ट दिशाओं के प्रवर्तक | त्रिदेवों के स्वरुप महागुरु दत्तात्रेय हैं| वशिष्ट व विश्वामित्र एकतंत्र व लोकतंत्र के आदि प्रवर्तक बने | इसके साथ ही अपने अपने राज्यकुलों के गुरुओं के भी नाम हैं, गुरु परशुराम, द्रौणाचार्य आदि |
तत्पश्चात देवगुरु ब्रहस्पति व दैत्यगुरु उशना काव्य या शुक्राचार्य हैं मानव समाज की दो विशिष्ट दिशाओं के प्रवर्तक | त्रिदेवों के स्वरुप महागुरु दत्तात्रेय हैं| वशिष्ट व विश्वामित्र एकतंत्र व लोकतंत्र के आदि प्रवर्तक बने | इसके साथ ही अपने अपने राज्यकुलों के गुरुओं के भी नाम हैं, गुरु परशुराम, द्रौणाचार्य आदि |
गीता के प्रवर्तक विश्वगुरु भगवान श्रीकृष्ण
की महिमा को कौन नहीं जानता मानता |
आधुनिक युग में गुरु आदि शंकराचार्य ने पुनः भारत में वैदिक धर्म की
पताका फहराई | परन्तु इसके पश्चात भारत का अज्ञान अन्धकार काल रहा जिसमें
आचार्य, काव्याचार्य, भगवदाचार्य हुए, स्थानीय गुरु हुए परन्तु राष्ट्र समाज साहित्य
की कोई स्पष्ट दिशा निर्धारक, प्रवर्तक नहीं हुए, क्योंकि परतंत्रता की बेड़ियों
में जकड़ा हुआ यह देश-समाज स्वयं दिशा विहीन व किंकर्तव्यविमूढ़ था |
गुरु
गोरखनाथ के काल से नवचेतना का युग प्रारम्भ हुआ | सदैव की भांति साहित्य द्वारा
समाज में जन मानस की चेतना को परतंत्रता की बेड़ियों से स्वातंत्र्य हेतु एक लहर
उठी जो जिसने राजनीति सहित प्रत्येक क्षेत्र में उद्बोधन किया | साहित्य के
क्षेत्र ने में अधिकाँश कवि साहित्यकार आदि साहित्य-काव्य की बनी बनाई लीक पर ही
चलते रहे अतः साहित्य में युगप्रवर्तक की भूमिका किसी की नहीं रही |
गुरुदेव
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला इस
क्षेत्र में अपने नवीन साहित्य अतुकांत कविता को लेकर आये और काव्य की दिशा
में एक नवीन युग का प्रवर्तन हुआ | आज साठोत्तरी कविता-साहित्य
में नवीन कविता विधा अगीत कविता के प्रवर्तक, अगीतायन संस्था के
संस्थापक अध्यक्ष, युवा कवियों के गुरूजी साहित्याचार्य श्री
डा रंगनाथ मिश्र सत्य साहित्यभूषण, जो गुरुदेव, गुरूजी, अगीत
गुरु, कवि कुल गुरु, युवा कवियों के गुरु व गुरुओं के गुरु के रूप में प्रतिष्ठित
हैं | जाने कितनी साहित्यिक संस्थाएं उनके संरक्षण में एवं उनकी संस्था के
तत्वावधान में साहित्य के क्षेत्र में कार्यरत हैं |
सभी गुरुओं को श्रद्धा नमन .....|
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-09-2017) को "सत्यमेव जयते" (चर्चा अंक 2721) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्रीजी
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