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रविवार, 13 मार्च 2016

मुस्कराहट --गीत----डा श्याम गुप्त

                    
        मुस्कराहट
 ( शीघ्र प्रकाश्य गीत संग्रह--जीवन दृष्टि -से )

मुस्कराहट से मीठा तो कुछ भी नहीं,
मन का दर्पण है ये मुस्कुराते रहो |

तन भी सुन्दर है, मन भी है भावों भरा,
भव्य चहरे पर यदि मुस्कराहट नहीं |
ज्ञान है, इच्छा भी, कर्म अनुपम सभी ,
कैसे झलके, न यदि मुस्कुराए कोई |
मन के भावों को कैसे मुखरता मिले,
सौम्य आनन् पर जो मुस्कराहट नहीं |

मुस्कराहट से मीठा तो कुछ भी नहीं,
मन का दर्पण है ये मुस्कुराते रहो |

ये प्रसाधन ये श्रृंगार साधन सभी,
चाँद लम्हों की सुन्दरता दे पायंगे |
मुस्कराहट खजाना है कुदरत का वह,
चाँद तारों से चहरे दमक जायंगे |
मुस्कराहट तो है अंतर्मन की खुशी,
झिलमिलाती है चहरे को रोशन किये |

मुस्कराहट से मीठा तो कुछ भी नहीं,
मन का दर्पण है ये मुस्कुराते रहो |

मुस्कराहट तो जीवन की हरियाली है,
ज़िंदगी में चमत्कार कर जायगी |
मन मधुर कल्पनाओं के संसार में,
साद-विचारों से भर मुस्कुराया करे |
सौम्य सुन्दर सहज भाव आभामयी,
रूप सौन्दर्य चहरे पै ले आयगी |

मुस्कराहट से मीठा तो कुछ भी नहीं,
मन का दर्पण है ये मुस्कुराते रहो |

एक गरिमा है आत्मीयता से भरी,
शिष्ट आचार की है ये पहली झलक |
चाहे कांटे हों राहों में बिखरे हुए,
मुस्कुराओ सभी विघ्न कट जायंगे |
इन गुलावों की शोखी पर डालें नज़र,
रह के काँटों में भी मुस्कुराते हैं वो |

मुस्कराहट से मीठा तो कुछ भी नहीं,
मन का दर्पण है ये मुस्कुराते रहो |


















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