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दोहे "गुरू पूर्णिमा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') --
दोहे "गुरू पूर्णिमा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') -- चलो गुरू के द्वार पर, गुरु का धाम विराट। गुरू शिष्य के खोलता, सार...
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कुछ दोहे मेरी कलम से..... बड़ा सरल संसार है , यहाँ नहीं कुछ गूढ़ है तलाश किसकी तुझे , तय करले मति मूढ़. कहा...
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दोहे "गुरू पूर्णिमा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') -- चलो गुरू के द्वार पर, गुरु का धाम विराट। गुरू शिष्य के खोलता, सार...
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हार में है छिपा जीत का आचरण। सीखिए गीत से , गीत का व्याकरण।। बात कहने से पहले विचारो जरा मैल दर्पण का अपने उतारो जरा तन...
बहुत खूबसूरत गीत
जवाब देंहटाएंपानी बिकने लगा अब दूध के भाव पर
कौन मरहम लगाये अब घाव पर
बहुत खूब.
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
सच ..दुनियादारी में अब तो दमन ही रहा....
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी सच को शब्दों में सुन्दरता से पिरोये हैं ...सादर !
अतिसुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति-बहुत खूबसूरत गीत
जवाब देंहटाएंलाजवाब गीत है ... क्या कहने सर ...
जवाब देंहटाएंसच्ची ....
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