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बुधवार, 20 नवंबर 2013

"शृंगार की बातें करें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

वन्दना, आराधना उपहार की बातें करें।।
प्यार का मौसम है, आओ प्यार की बातें करें।

नेह की लेकर मथानी, सिन्धु का मन्थन करें,
छोड़ कर छल-छद्म, कुछ उपकार की बातें करें।

आस का अंकुर उगाओ, दीप खुशियों के जलें,
प्रीत का संसार है, संसार की बातें करें।

भावनाओं के नगर में, छेड़ दो वीणा मधुर,
घर सजायें स्वर्ग सा, मनुहार की बातें करें।

कदम आगे तो बढ़ाओ, सामने मंजिल खड़ी,
जीत के माहौल में, क्यों हार की बातें करें।

“रूप” की उलझी डगर में, भावनाएँ हैं प्रबल,
आओ उपवन में चलें, शृंगार की बातें करें।

4 टिप्‍पणियां:

  1. अत्यंत ही सुन्दर भावों का सम्प्रेषण आदरणीय शास्त्री जी! किन्तु ध्यान आकृष्ट कराना चाहूँगा कि एक स्थान पर बह्र भटक रही है, :--कदम आगे तो बढ़ाओ, सामने मंजिल खड़ी! --> क़दम १२ है किन्तु इस मिस्रे में प्रथम रुक्न में २१ की अनिवार्यता है! दूसरे व तीसरे शे'र में तकाबुले रदीफ़ का दोष द्रष्ट है! सादर,

    जवाब देंहटाएं

  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21-11-2013 की चर्चा में है
    कृपया चर्चा मंच पर पधारें
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुन्दर भावों युक्त ग़ज़ल...शास्त्रीजी...बधाई....

    कदम आगे तो बढ़ाओ, सामने मंजिल खड़ी,
    लय गति है सुन्दर स्वस्ति तो क्या रुक्न की बातें करें |

    जवाब देंहटाएं

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