कुछ सुना कीजिए, कुछ कहा कीजिए!
मौन इतना कभी मत रहा कीजिए!!
मौन इतना कभी मत रहा कीजिए!!
गम को मिल-बाँटकर, बोझ हल्का करो,
बात पर बेहिचक तप्सरा कीजिए!
जिन्दगी एक मुश्किल भरा फलसफा,
प्यार से दिल लगाकर पढ़ा कीजिए!
मुद्दतों बाद गुलशन में गुल हैं खिले,
देख कर के बगीचा हँसा कीजिए!
दिल नहीं कम है दैरो-हरम से प्रिये!
रोज ही इसमें आते रहा कीजिए!
गैर तुम भी नहीं, गैर हम भी नही,
चाँद को बादलों से रिहा कीजिए!
"रूप" थोड़े ही दिन का तो मेहमान है,
शीत-गर्मी भी कुछ तो सहा कीजिए!
चाँद को बादलों से रिहा कीजिए!....वाह..क्या बात है शास्त्रीजी.....क्या कहने....
जवाब देंहटाएंवाह !!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
बधाई ------
आग्रह है--
आशाओं की डिभरी ----------
शुभ संध्या ! मन की ग्रंथि खोलने वाली इस गज़ल हेतु साधुवाद !
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