बेटियाँ
बेटियाँ मिट्टी के दियों की तरह होतीं हैं
कहीं लेती हैं जन्म और कहीं जलती हैं
कुम्हार कैसे करीने से दिया गढ़ता है
आग में रखता है तब उसमे रंग चढ़ता है
कोई ले जाता है मन्दिर में जलाने के लिए
और कोई तो उसे सोने से भी मढ़वाता है
चार पल दुसरे के घर की रौशनी के लिए
ये दिया आग को माथे पे सजा लेता है |
बेटियाँ बाग के फूलों की तरह होतीं हैं
कहीं खिलतीं हैं और खुशबू कहीं देती हैं
माली कैसे निहारता है कलि का खिलना
सींचना,धूप,आँधियों से बचा कर रखना
कोई ले जाता है मन्दिर में चढाने के लिए
कोई अर्थी पे चढ़ाता है ,कुचल देता है
एक छोटी सी उम्र और एक अंजान सफ़र
फूल कुछ लम्हों में ही उम्र को जी लेता है |
बेटियाँ बर्फ की घाटी की तरह होतीं हैं
जब पिघलतीं हैं तो वो जाने कहाँ होतीं हैं
उम्र भर जंगलों और पत्थरों से टकरा कर
आप ही अपने मुकद्दर से लड़ा करतीं हैं
कितनी ही बस्तियां बसतीं हैं किनारे उनके
कितने खेतों को सींचती हुई बह जातीं हैं
उनका अपना वुज़ूद रहता तभी तक कायम
जब तलक वो ना समुन्दर में समाजातीं हैं
बेटियाँ काली घटाओं की तरह होतीं हैं
जब बरसतीं हैं तो धरती को हरा करतीं हैं
आसमाँ देर तक उनको नहीं रख पाता है
धूम से बिजलियाँ चमका के विदा करता है
धरती पलकें बिछाए करती है स्वागत उनका
और मौसम भी खुश गवार सा हो जाता है
एक दिन ये घटायें कहीं खो जातीं हैं
कहीं होती हैं जवां, कहीं फना होतीं हैं
बेटियाँ दीप हैं, कलियाँ हैं, बर्फ, बादल हैं,
आपके हाथ से टूटें ना, बहुत कोमल हैं
इनकी किस्मत में कल कहाँ का सफ़र तय होगा,
ये कुछ दिनों के लिए आपकी धरोहर हैं |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार को (13-11-2013) चर्चा मंच 1428 : केवल क्रीडा के लिए, मत करिए आखेट "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद ,शास्त्री जी
हटाएंबहुत ही कोमल अहसास लिए भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ,रीना जी
हटाएंबेटियों को प्रकृति से जोड़कर उनकी महिमा में चार चाँद लगा दिया है आपने -बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट काम अधुरा है
धन्यवाद प्रसाद जी
हटाएंsundar kavita .
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