बेबस ---निर्मला सिंह गौर की कविता
मैंने बोया आम उसने बो दिया पीपल तभी
आम तो ऊगा नहीं पीपल महावट बन गया
लोग आकर उस पे फल औए पुष्प चढाने लगे
और श्रद्धा भक्ति से उसके भजन गाने लगे |
आम भी ऊगा मगर, पीपल के साये में रहा
उसका जो व्यक्तित्व था वो था डरा सहमा हुआ
फिर भी उसने वक्त से पहले मधुर फल दे दिए
राहगीरों के लिए ठहराव शीतल दे दिए |
लोग उसको पत्थरों की चोट नहलाने लगे
और उसके फलों को बेवक्त ही पाने लगे
है अजब यह रीत जो इस जगत में सज्जन बने
उस पर ही दुनिया ने निरअपराध ही पाहन हने|
है यही दस्तूर दुनिया का सभी लोगो सुनो
देवता की पूंछ पकड़ो और पीपल से पूजो
मैंने देखा कितने पीपल पा रहे हैं यश यहाँ
और कितने आम हैं मेरी तरह बेबस यहाँ |
मैंने बोया आम उसने बो दिया पीपल तभी
आम तो ऊगा नहीं पीपल महावट बन गया
लोग आकर उस पे फल औए पुष्प चढाने लगे
और श्रद्धा भक्ति से उसके भजन गाने लगे |
आम भी ऊगा मगर, पीपल के साये में रहा
उसका जो व्यक्तित्व था वो था डरा सहमा हुआ
फिर भी उसने वक्त से पहले मधुर फल दे दिए
राहगीरों के लिए ठहराव शीतल दे दिए |
लोग उसको पत्थरों की चोट नहलाने लगे
और उसके फलों को बेवक्त ही पाने लगे
है अजब यह रीत जो इस जगत में सज्जन बने
उस पर ही दुनिया ने निरअपराध ही पाहन हने|
है यही दस्तूर दुनिया का सभी लोगो सुनो
देवता की पूंछ पकड़ो और पीपल से पूजो
मैंने देखा कितने पीपल पा रहे हैं यश यहाँ
और कितने आम हैं मेरी तरह बेबस यहाँ |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (17-11-2013) को "लख बधाईयाँ" (चर्चा मंचःअंक-1432) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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गुरू नानक जयन्ती, कार्तिक पूर्णिमा (गंगास्नान) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'