रेत का घरौंदा
समंदर किनारे रेत पर
चलते चलते यूं ही
अचानक मन किया
चलो बनाए
सपनों का सुंदर एक घरौंदा
वहीं रेत पर बैठ
समेट कर कुछ रेत
कोमल अहसास के साथ
बनते बिगड़ते राज के साथ
बनाया था प्यारा सा
सुंदर
एक घरौंदा................
वही समीप बैठ कर
बुने हजारों सपनो के
ताने बाने जो
उसी रेत की मानिंद
भुरभुरे से ,
हवा के झोंके से उड़ने को
बेताब
प्यारा घरौंदा
..............
अचानक उठी लहर
बहा ले गई वो
प्यारा सुंदर घरौंदा
जिसको सींचा था
सहलाया था ,
प्यार से
दुलराया था
बिखरे पड़े उन अवशेषों को
समेट फिर चल दी
उन्हे दुबारा सवारने की
खातिर
प्यारा सा सपनों का
घरौंदा..................
जो शायद सपने ही है
जो कभी सच होते है
कभी नहीं भी
मन की संकरी गलियों मे
यूं ही घुमड़ते हुए बादल से
सपने .............
रेत के घरौंदे ही तो है ......................
।
अन्नपूर्णा बाजपेई
ह्रदयस्पर्शी कविता...आभार।
जवाब देंहटाएंसमय हो तो कभी यहाँ भी पधारेँ, मुझे खुशी होगी वंदे मातरम्: एहसास
आपका आभार अभिषेक जी ।
हटाएंह्रदयस्पर्शी कविता...आभार।
जवाब देंहटाएंसमय हो तो कभी यहाँ भी पधारेँ, मुझे खुशी होगी वंदे मातरम्: एहसास
अत्यंत भावना प्रधान अभिव्यक्ति ,सुंदर कविता .
जवाब देंहटाएंबधाई
आपका आभार ।
हटाएंजीवन में कई सपने समय के लहरों के साथ मिट जाते है ! सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट तुम
आपका हार्दिक आभार आ0 काली पद जी ।
हटाएंआपका आभार आ0 शास्त्री जी ।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आ0 शास्त्री जी ।
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