चाहता हूँ, तुझे
मना लूँ प्यार से
लेकिन डर लगता है तेरी नाराज़गी से |
घर मेरा तारीक के आगोश में है
रोशन हो जायेगा तुम्हारे बर्के हुस्न से |
इन्तेजार रहेगा तेरा क़यामत तक
नहीं डर कोई गम-ए–फिराक से |
मालुम है, कुल्फ़ते बे-शुमार हैं रस्ते में
इश्क–ए–आतिश काटेगा वक्त इज़्तिराब से |
बर्के हुस्न तेरी बना दिया है मुझे बे–जुबान
करूँगा बयां दिल-ए-दास्ताँ,तश्न-ए–तकरीर से |
शब्दार्थ :बर्के =बिजली जैसा चमकीला सौन्दर्य
तारीक़= अँधेरा
तश्न-ए-तकरीर=होटों की भाषा
कालीपद 'प्रसाद'
लेकिन डर लगता है तेरी नाराज़गी से |
घर मेरा तारीक के आगोश में है
रोशन हो जायेगा तुम्हारे बर्के हुस्न से |
इन्तेजार रहेगा तेरा क़यामत तक
नहीं डर कोई गम-ए–फिराक से |
मालुम है, कुल्फ़ते बे-शुमार हैं रस्ते में
इश्क–ए–आतिश काटेगा वक्त इज़्तिराब से |
बर्के हुस्न तेरी बना दिया है मुझे बे–जुबान
करूँगा बयां दिल-ए-दास्ताँ,तश्न-ए–तकरीर से |
शब्दार्थ :बर्के =बिजली जैसा चमकीला सौन्दर्य
तारीक़= अँधेरा
तश्न-ए-तकरीर=होटों की भाषा
कालीपद 'प्रसाद'
© सर्वाधिकार सुरक्षित
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (25-11-2013) को "उपेक्षा का दंश" (चर्चा मंचःअंक-1441) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
sundar prastuti
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