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सोमवार, 25 नवंबर 2013

ग़ज़ल------उन के अश्कों को------डा श्याम गुप्त.....



         ग़ज़ल.....

उन के अश्कों को पलकों से चुरा लाये हैं |
उनके गम को हम खुशियों से सजा आये हैं

आप मानें या न मानें यह तहरीर मेरी ,
उनके अशआर ही ग़ज़लों में उठा लाये हैं|

उस दिए ने ही जला डाला आशियाँ मेरा ,
जिसको बेदर्द हवाओं से बचा लाये हैं |

याद करने से भी दीदार न होता उनका,
इश्क में यूंही तड़पने की सजा पाए हैं|

प्यार में दर्द का अहसास कहाँ होता है,
प्यार में ज़ज्ब दिलों को ही जख्म भाये हैं|

प्रीति है भीनी सी बरसात, क्या आलम कहिये,
रूह क्या अक्स भी आशिक का भीग जाए है|

श्याम करते हैं सभी शक मेरे ज़ज्वातों पे,
हम से ही दर्द के नगमे जहां में आये हैं||

                                     --- चित्र गूगल साभार....  

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगलवार २६/११/१३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहाँ हार्दिक स्वागत है।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार को (26-11-2013) "ब्लॉगरों के लिए उपयोगी" ---१४४२ खुद का कुछ भी नहीं में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं

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