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सोमवार, 25 नवंबर 2013

हेमन्त ऋतु के दोहे - अरुण कुमार निगम

कार्तिक अगहन पूस ले, आता जब हेमन्त

मन की चाहत सोचती, बनूँ निराला पन्त |

शाल गुलाबी ओढ़ कर, शरद बने हेमंत |
शकुन्तला को  ढूँढता , है मन का दुष्यन्त |

कोहरा  रोके  रास्ता , ओस  चूमती देह
लिपट-चिपट शीतल पवन,जतलाती है नेह |

ऊन बेचता हर गली , जलता हुआ अलाव
पवन अगहनी मांगती , औने - पौने भाव |

मौसम का ले लो मजा, शहरी चोला फेंक
चूल्हे के  अंगार में , मूँगफल्लियाँ  सेंक |

मक्के की रोटी गरम , खाओ गुड़ के संग
फिर देखो कैसी जगे, तन मन मस्त तरंग |

गर्म पराठे  कुरकुरे , मेथी के जब खायँ
चटनी लहसुन मिर्च की,भूले बिना बनायँ |
 
गाजर का हलुवा कहे, ले लो सेहत स्वाद
हँसते रहना साल भर, मुझको करके याद |

सीताफल हँसने लगा , खिले बेर के फूल
सरसों की अँगड़ाइयाँ, जलता देख बबूल |

भाँति भाँति के कंद ने, दिखलाया है रूप
इस मौसम भाती नहीं, किसे सुनहरी धूप |

मौसम  उर्जा  बाँटता , है  जीवन पर्यंत
संचित तन मन में करो,सदा रहो बलवंत |


अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार को (26-11-2013) "ब्लॉगरों के लिए उपयोगी" ---१४४२ खुद का कुछ भी नहीं में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरणीय

    जवाब देंहटाएं
  3. हेमंत ऋतू का जीवंत वर्णन,हर दोहा भारत के गांवों की मिटटी की गंध में सरावोर है ,
    अति सुंदर ,बधाई,
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. शकुन्तला को ढूँढता , है मन का दुष्यन्त |...क्या बात है ...सुन्दर गुनुगुने दोहे ....

    जवाब देंहटाएं

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