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शनिवार, 23 नवंबर 2013

रेत के घरौंदे ................... ( अन्नपूर्णा बाजपेई )


रेत का घरौंदा

समंदर किनारे रेत पर
चलते चलते यूं ही
अचानक मन किया
चलो बनाए
सपनों का सुंदर एक घरौंदा
वहीं रेत पर बैठ
समेट कर कुछ रेत
कोमल अहसास के साथ
बनते बिगड़ते राज के साथ
बनाया था प्यारा सा सुंदर 
एक घरौंदा................
वही समीप बैठ कर
बुने हजारों सपनो के
ताने बाने जो
उसी रेत की मानिंद
भुरभुरे से ,
हवा के झोंके से उड़ने को बेताब
प्यारा घरौंदा ..............
अचानक उठी लहर
बहा ले गई वो
प्यारा सुंदर घरौंदा
जिसको सींचा था
सहलाया था , प्यार से
दुलराया था
बिखरे पड़े उन अवशेषों को
समेट फिर चल दी
उन्हे दुबारा सवारने की खातिर
प्यारा सा सपनों का घरौंदा..................
जो शायद सपने ही है
जो कभी सच होते है
कभी नहीं भी
मन की संकरी गलियों मे
यूं ही घुमड़ते हुए बादल से
सपने .............
रेत के घरौंदे ही तो है ...................... ।

अन्नपूर्णा बाजपेई









9 टिप्‍पणियां:

  1. ह्रदयस्पर्शी कविता...आभार।
    समय हो तो कभी यहाँ भी पधारेँ, मुझे खुशी होगी वंदे मातरम्: एहसास

    जवाब देंहटाएं
  2. ह्रदयस्पर्शी कविता...आभार।
    समय हो तो कभी यहाँ भी पधारेँ, मुझे खुशी होगी वंदे मातरम्: एहसास

    जवाब देंहटाएं
  3. अत्यंत भावना प्रधान अभिव्यक्ति ,सुंदर कविता .
    बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. जीवन में कई सपने समय के लहरों के साथ मिट जाते है ! सुन्दर प्रस्तुति !
    नई पोस्ट तुम

    जवाब देंहटाएं
  5. आपका आभार आ0 शास्त्री जी ।

    जवाब देंहटाएं
  6. आपका आभार आ0 शास्त्री जी ।

    जवाब देंहटाएं

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