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रविवार, 8 सितंबर 2013

"रूबाई छन्द का शुभारम्भ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मित्रों।
आज से एक माह तक "सृजन मंच ऑनलाइन" पर हम रूबाई छन्द का शुभारम्भ कर रहे हैं।
रूबाई चार पंक्ति वाली रचना को कहते है, या यह कह लें दो शे'र वाली कविता है। जिसमें पहली-दूसरी और अन्तिम पंक्ति तुकान्त हो। अतः रूबाई सबसे सरल छन्द है।
मेरा सभी योगदानकर्ताओं से अनुरोध है कि "सृजन मंच ऑनलाइन" पर रूबाइयाँ ही पोस्ट करें।
उदाहरण के लिए मेरी कुछ रूबाइयाँ प्रस्तुत हैं- 
(1)
जीवन में तम को हरने को, चिंगारी आ जाती है।
घर को आलोकित करने को, बहुत जरूरी बाती है।
होली की ज्वाला हो चाहे, तम से भरी अमावस हो-
हवनकुण्ड में ज्वाला बन, बाती कर्तव्य निभाती है।
(2)
हम दधिचि के वंशज हैं, ऋषियों की हम सन्ताने हैं।
मातृभूमि की शम्मा पर, आहुति देते परवाने हैं।
दुनियावालों भूल न करना, कायर हमें समझने की-
उग्रवाद-आतंकवाद से, डरते नहीं दीवाने हैं। 
(3)
जंगल-झाड़ी, गाँव-नगर में, चौराहों-गलियारों में
तुकबन्दी करने वाले तो, मिल जाते बाजारों में
मुझे अलग मत समझो यारों, मैं भी उनमें से ही हूँ,
असली सायर वो होते हैं, जो जलते अंगारों में

10 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा आज सोमवार [09.09.2013]
    चर्चामंच 1363 पर
    कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
    सादर
    सरिता भाटिया

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर रुबाई है श्री राम जी... बधाई ..

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  4. उत्तम-

    गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें-

    जवाब देंहटाएं
  5. गणेश चतुर्थी की शुभकामना ,रुबाई छंद को समझा

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  6. gajanan sal bhar baad tum fir aaye
    sang apne dheron khushiya laye
    ghhum rahe man me bachpan ke wo saye
    jab in dino hum par tum hi rahte the chhaye...

    जवाब देंहटाएं

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