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मंगलवार, 10 सितंबर 2013

चार रुबाइयां ---डा श्याम गुप्त .....

तुमको देखा तुमको जाना तुमको चाहा जांना ;
जानकर आपको कुछ और नहीं जाना जांना |
आपकी चाह में कुछ और की चाहत न रही -
तेरी चाहत को ही पूजा और पूजा  जाना ||

लिख दिया अपने  दिल पे तुम्हारा नाम यारा ,
गुल से भी नाज़ुक है ये दिल हमारा यारा |
आप यूं  तोड़कर इसको न जाइयेगा कभी -
अक्स बसता है इसमें तो तुम्हारा यारा ||

आप आये दिल के आशियाने में,
क्या कहें क्या न हुआ ज़माने में |
बात जो थी बस लवों तक आपके,
होगई है बयाँ हर फ़साने में |

दो तरसे हुए जिस्म करीब आये,
गुलमोहर के फूल खिलखिलाए |
नगमे स्वयं ही सदाएं देने लगे -
मीठी गुदाज़ रात मुस्कुराए |





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