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शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

एक मुक्तक आपके दरबार में

 
सुप्रभात मित्रों
पत्नी को समर्पित एक मुक्तक आपके दरबार में-
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पूर्ण चन्द्र सम अनुपम आनन, कुन्दन रंग समाया है |
टपक रहा है अमिय अधर से,नैनन मृगमद छाया है |
पोर - पोर से टपक रही है, नव-यौवन रस-धार प्रिय,
रक्त-वर्ण  ज्यों मिला दुग्ध में,  विधि ने तुम्हें बनाया है |
--डा.राज सक्सेना
purn chndr sm anupm aann, kundn rng smaya hai.
tpk rha hai amiy adhr se, nainn mrgmd chhaya hai.
por-por se tpk rhi hai, nv-yauvn rs-dhar priy,
rkt-vrn jyoN mila dugdh meN, rch hr ang bnaya hai.
-Dr.Raaj Saksena

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपने लिखा....हमने पढ़ा....
    और लोग भी पढ़ें; ...इसलिए शनिवार 14/09/2013 को
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    पर लिंक की जाएगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (13-09-2013) महामंत्र क्रमांक तीन - इसे 'माइक्रो कविता' के नाम से जानाः चर्चा मंच 1368 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  3. क्या बात है ...सुन्दर परिचय, अभ्यर्थना ,लालित्यमय -प्रशंसा...

    जवाब देंहटाएं

  4. बहुत सुन्दर है प्रतीक भी हटके सौंदर्य के प्रतिमान भी।

    जवाब देंहटाएं

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