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शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

"एक मुक्तक" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


भारत की महानता कानही है अतीत याद,
वोट माँगने कोनेता आया बिनबुलाया है।
देश का कहाँ है ध्यानहोता नित्य सुरापान,
जातिधर्मप्रान्त जैसेमुद्दों को भुनाया है।
युवराज-सन्त चल पड़ेगली-हाट में,
निर्वाचन के दौर नेये दिन भी दिखाया है।

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब ,,, पर मुक्तक तो चार पंक्तियों का होता है....

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  2. भारत की महानता का, नही है अतीत याद,
    वोट माँगने को, नेता आया बिनबुलाया है।
    देश का कहाँ है ध्यान, होता नित्य सुरापान,
    जाति, धर्म, प्रान्त जैसे, मुद्दों को भुनाया है।
    युवराज-सन्त चल पड़े, गली-हाट में,
    निर्वाचन के दौर ने, ये दिन भी दिखाया है।
    घूमता है एक बकरा नगर- नगर, प्रांत- प्रांत मिमियाता हुआ दिग्भ्रान्त बोल देता है एक आदि शब्द कभी काम के

    भारत की महानता का, नही है अतीत याद,
    वोट माँगने को, नेता आया बिनबुलाया है।
    देश का कहाँ है ध्यान, होता नित्य सुरापान,
    जाति, धर्म, प्रान्त जैसे, मुद्दों को भुनाया है।
    युवराज-सन्त चल पड़े, गली-हाट में,
    निर्वाचन के दौर ने, ये दिन भी दिखाया है।

    घूमता है एक बकरा नगर- नगर, प्रांत- प्रांत मिमियाता हुआ दिग्भ्रान्त बोल देता है एक आदि शब्द कभी काम के

    भारत की महानता का, नही है अतीत याद,
    वोट माँगने को, नेता आया बिनबुलाया है।
    देश का कहाँ है ध्यान, होता नित्य सुरापान,
    जाति, धर्म, प्रान्त जैसे, मुद्दों को भुनाया है।
    युवराज-सन्त चल पड़े, गली-हाट में,
    निर्वाचन के दौर ने, ये दिन भी दिखाया है।
    घूमता है एक बकरा नगर- नगर, प्रांत- प्रांत मिमियाता हुआ दिग्भ्रान्त बोल देता है एक आदि शब्द कभी काम के

    भारत की महानता का, नही है अतीत याद,
    वोट माँगने को, नेता आया बिनबुलाया है।
    देश का कहाँ है ध्यान, होता नित्य सुरापान,
    जाति, धर्म, प्रान्त जैसे, मुद्दों को भुनाया है।
    युवराज-सन्त चल पड़े, गली-हाट में,
    निर्वाचन के दौर ने, ये दिन भी दिखाया है।

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  3. सुंदर मुक्तक के लिये बधाई. दो पंक्तियाँ और हो जायें तो यह घनाक्षरी के करीब हो सकता है., सादर........

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