भारत की महानता का, नही है अतीत याद,
वोट माँगने को, नेता आया बिनबुलाया है।
देश का कहाँ है ध्यान, होता नित्य सुरापान,
जाति, धर्म, प्रान्त जैसे, मुद्दों को भुनाया है।
युवराज-सन्त चल पड़े, गली-हाट में,
निर्वाचन के दौर ने, ये दिन भी दिखाया है।
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शुक्रवार, 27 सितंबर 2013
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बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंसुंदर व सामयिक कटाक्ष...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ,,, पर मुक्तक तो चार पंक्तियों का होता है....
जवाब देंहटाएंभारत की महानता का, नही है अतीत याद,
जवाब देंहटाएंवोट माँगने को, नेता आया बिनबुलाया है।
देश का कहाँ है ध्यान, होता नित्य सुरापान,
जाति, धर्म, प्रान्त जैसे, मुद्दों को भुनाया है।
युवराज-सन्त चल पड़े, गली-हाट में,
निर्वाचन के दौर ने, ये दिन भी दिखाया है।
घूमता है एक बकरा नगर- नगर, प्रांत- प्रांत मिमियाता हुआ दिग्भ्रान्त बोल देता है एक आदि शब्द कभी काम के
भारत की महानता का, नही है अतीत याद,
वोट माँगने को, नेता आया बिनबुलाया है।
देश का कहाँ है ध्यान, होता नित्य सुरापान,
जाति, धर्म, प्रान्त जैसे, मुद्दों को भुनाया है।
युवराज-सन्त चल पड़े, गली-हाट में,
निर्वाचन के दौर ने, ये दिन भी दिखाया है।
घूमता है एक बकरा नगर- नगर, प्रांत- प्रांत मिमियाता हुआ दिग्भ्रान्त बोल देता है एक आदि शब्द कभी काम के
भारत की महानता का, नही है अतीत याद,
वोट माँगने को, नेता आया बिनबुलाया है।
देश का कहाँ है ध्यान, होता नित्य सुरापान,
जाति, धर्म, प्रान्त जैसे, मुद्दों को भुनाया है।
युवराज-सन्त चल पड़े, गली-हाट में,
निर्वाचन के दौर ने, ये दिन भी दिखाया है।
घूमता है एक बकरा नगर- नगर, प्रांत- प्रांत मिमियाता हुआ दिग्भ्रान्त बोल देता है एक आदि शब्द कभी काम के
भारत की महानता का, नही है अतीत याद,
वोट माँगने को, नेता आया बिनबुलाया है।
देश का कहाँ है ध्यान, होता नित्य सुरापान,
जाति, धर्म, प्रान्त जैसे, मुद्दों को भुनाया है।
युवराज-सन्त चल पड़े, गली-हाट में,
निर्वाचन के दौर ने, ये दिन भी दिखाया है।
सुंदर मुक्तक के लिये बधाई. दो पंक्तियाँ और हो जायें तो यह घनाक्षरी के करीब हो सकता है., सादर........
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