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गुरुवार, 19 सितंबर 2013

बैठे ठाले... आलेख...डा श्याम गुप्त....




                                                                     
  बैठे ठाले...
                                                       

                 भला बताइये शून्य क्या है ? आप छूटते ही कहेंगे कि, अजी ये क्या बात हुई !.... शून्य एक अंक है जो '' से प्रकट किया जाता है.... जिसका अर्थ है - कुछ नहीं, कोई नहीं, रिक्त स्थान आदि | पर हुज़ूर ! आप यह न समझें कि शून्य एक निरर्थक राशि है या कोई राशि ही नहीं है |   साहिबान! यह अंक, शब्द या जो भी है,... है अत्यंत महत्वपूर्ण व महान | क्या कहा ? क्यों तो लीजिये आपने किसी को १०००० रु दिए और लिखे -
 '१०००/- दिए ' ...... अरे ! आप परेशान क्यों हैं ? क्या कहा ? ९००० रु ही रफूचक्कर होगये ! अब रोइए उस महान  शून्य को सिर पकड़ कर |

              इसे  बिंदी  भी कहा जाता है | अब बिंदी की सार्थकता पर प्रश्न चिन्ह न लगाइए वरना समझ लीजिये बस श्रीमतीजी ....... और कहीं महिला संगठनों को पता चल गया आपकी इस विचार धारा का तो बस ...बेलन-थाली-चिमटा, धरना -प्रदर्शन ..और आप पर महिला-विरोधी होने का.....| अरे तभी तो अपने बिहारी जी भी बहक गए --
                 
"कहत सबै बेंदी दिए, आंकु दस गुनों होत |
                  
तिय लिलार बेंदी दिये, अगणित बढ़त उदोत ||"

                 और याद है वह हिन्दी की बिंदी का कमाल जब स्कूल में इमला सत्र में  -" इत्र बेचने वाले को गंधी कहते हैं "..से बिंदी गायब कर देने पर ....मास्टर जी के .झापड़ ही झापड़ ..|

                 र इस शून्य का अर्थ कुछ नहीं और महत्त्व बहुत कुछ है...इस विरोधाभास से न तो हम ही संतुष्ट होंगे, न आप ही | इसका अर्थ कुछ और भी है | यदि न जानते हों तो बताये देते हैं कि हिन्दी के प्रश्न- पत्र  में शून्य का अर्थ सिर्फ कुछ नहीं, कोई  नहीं न लिख दीजिएगा, नहीं तो निश्चिन्त रहिये, शून्य ही नसीब होगा | अब जरा आकाश के पर्ययाबाची तो दोहराइए ...समझ गए न | अरे  तभी तो कबीर जी  भी  रहस्य की बात कह गए---
                                                   " सुन्न भवन  में अनहद बाजे,
                                                     जग का साहिब रहता है ||  "

               प्रिय पाठक ! परन्तु इस '0' चिन्ह वाले शून्य को शून्य ही  क्यों कहते हैं | सोचिये | क्योंकि शून्य को आकाश भी कहते हैं और आकाश  है भी शून्य -निर्वात, सुन्न भवन | वह गोल भी है और अनंत भीजैसे शून्य भी गोल है और अनंत भी | इसकी परिधि पर चक्कर लगाने वाले को छोर कहाँ मिलता है | जैसे क्षितिज की और दौडने वाले को क्षितिज नहीं मिलता

             आखिर अपने पूछ ही  लियाशून्य का आविष्कारक कौन है | जितने मुंह उतनी बातें, बात से बात निकालने में क्या जाता है परन्तु शून्य का अविष्कार एक भारतीय मनीषा द्वारा ही हुआ|  इससे पूर्व विश्व-गणना सिर्फ ९ तक ही सीमित थी |


             महर्षि गृत्समद  द्वारा   इस असीम शून्य के आविष्कार के पश्चात् ही गणित व भौतिकी अस्तित्व में आये | ससीम मानव की मेधा असीम की और बढ़ी | सभ्यता को आगे चढ़ने का सोपान प्राप्त हुआ | संसार गणित पर आधारित है और गणित शून्य पर | मानव की ज्ञान व प्रकृति नियमन के चरमोत्कर्ष  की युग-गाथा  कम्प्युटर-विज्ञान भी तो शून्य आधारित सिद्धांत की भाषा-भूमि पर टिका हैजिसके कारण आज मानव स्वयं सोचने वाले रोबोट-यंत्र-मानव बनाकर मानव के सृष्टा होने का सुस्वप्न देखकर ईश्वरत्व के निकट पहुँचने को प्रयास-रत है | और......खैर छोडिये भी....कहाँ आगये ....  " आये थे हर भजन को ओटन लगे कपास " |


                      हाँ तो आपने शून्य का अर्थ और महत्त्व समझ लिया | परन्तु श्रीमान ! यदि अप शिक्षार्थी, विद्यार्थी, परीक्षार्थी हैं तो शून्य के महत्त्व को कुछ अधिक ही अधिग्रहण करके परीक्षा में भी शून्य ही लाने  का  यत्न न करें , अन्यथा फिर एक वर्ष तक शून्य का सर पकड़ कर रोइयेगा |

                      चलिए अब तो अप शून्य का अर्थ समझ ही गए | क्या कहा ! अब भी नहीं समझे ? तो शून्य की भाँति शून्य के चक्कर लगाते रहिये, कभी तो समझ ही जायेंगे ---
                       
"लगा रह दर किनारे पर, कभी तो लहर आयेगी "
 
                       शायद अब तो आप समझ ही गए की शून्य क्या है | यदि अब भी न समझे तो हम क्या करें, आपका मष्तिष्क ही शून्य है और आपकी अक्ल भी शून्य में घास चरने चली गयी है | आपका वर्तमान व भविष्य भी शून्य का भूत ही है | हम तो उस कहावत को सोच के डर रहे हैं कि...    " खाली दिमाग शैतान का घर होता है |"

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (20-09-2013) "हिन्दी पखवाड़ा" : चर्चा - 1374 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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