साधू सन्त नाम धारी अनेक
सच्चा होगा शायद हजारों में एक l
बैठे हैं गेरुआ वस्त्र धारण कर
ढोंग करते हैं भक्त का माला जपकर ll
धरकर वेश साधूसन्त जोगन का
साधुसंत का नाम बदनाम किया l
गेरुआ, सफ़ेद हो या और वसना
जब उतर गया तो शैतान निकला ll
तंत्र मंत्र साधने कोई कापालिक बन गया
सिद्धि हेतु मासूम बच्चों का बलि चढ़ाया l
बन बैठा गुरु वो ओड़कर गेरुआ चोले
हंस के रूप में छुपे वो काले कौए निकले ll
हरि भजन करते करते कर गए नारी भजन
नारी देह के सामने गुरु ने कर दिया समर्पण l
जैसा गुरु वैसा चेला , प्रवचन है ढकोसला
भक्त समागम बना है, व्यभिचारियों का मेला ll
गुरु का एकांत वास ,पर
उसमे होती है रंगरेलियां
उसमे होती है रंगरेलियां
हरि छोड़ ,चेलियों के साथ
गुरु करते है रंगरेलियां ll
गुरु करते है रंगरेलियां ll
सहमति है तो सोने में सुहागा
असहमति में तो यह बलात्कार है l
किन्तु सन्त ,बाबाओं को उसमें
नहीं लगता है कोई अनाचार है ll
ऐसे गुरु सन्त साधु जोगिनो के
सब के स्वर में होते हैं एकतान l
इनसे भले तो वे लोग है
जग जिनको कहते हैं शैतान ll
कालीपद "प्रसाद"
सर्वाधिकार सुरक्षित
कालीपद "प्रसाद"
सर्वाधिकार सुरक्षित
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (26-09-2013) चर्चा- 1380 में "मयंक का कोना" पर भी है!
हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जवाब देंहटाएंगुरु का एकांत वास ,पर
उसमे होती है रंगरेलियां
हरि छोड़ ,चेलियों के साथ
गुरु करते है रंगरेलियां ll
गुरु का एकांत वास ,पर
जवाब देंहटाएंउसमे होती है रंगरेलियां
हरि छोड़ ,चेलियों के साथ
गुरु करते है रंगरेलियां ll
कभी न कहना गुरु तुम इनको ,
कहना इनको गुरुघंटाल ,
चांडालों के ये चंडाल।