हिंदी पर तीन मुक्तक
मातृभाषा पर जिसे,अपनी न स्वाभिमान
है |
राष्ट्रभाषा के प्रति, रखता नहीं
अधिमान है |
पूर्ण पशुवत है जिसे,ना शीर्ष पर
हो राष्ट्रहित ,
सम्पदामय हो भले, निकृष्ट का प्रतिमान है |
-०-
करेगी देश को जगमग
, मुझे विश्वास हिन्दी का
|
है उत्सव के लिये निश्चित , सितम्बर मास हिन्दी का |
हर एक चौद्ह सितम्बर को,मनाते हैं
हम 'हिन्दी डे'-
इसी दिन कर दिया करते हैं, तर्पण खास हिन्दी का |
-०-
उन्नत ललाट पर चमक रही,भारत माता
की बिन्दी है |
है ब्रह्मपुत्र सम हिमनद यह,सतलुज,सरयू,कालिन्दी है |
जो आकर मिला पवित्र हुआ,है पतित-पावनी मां जैसी,
वर्तनी सरल, भाषा सीधी,
निर्मल गंगा सम हिन्दी है |
-०-
अच्छे भाव हैं ---जय हिन्दी ...
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