बस यही साहित्य है.
देखते ही मोह ले जो मन, वही लालित्व है|
पी सके संसार का जो तम,वही आदित्य है|
डूबने से जो बचाकर विश्व-हित की नाव को,
डूबने से जो बचाकर विश्व-हित की नाव को,
नव सृजन का पथ दिखाए,बस यही साहित्य है|
रूप है मृदुता नही, किस काम का लालित्व वो |
प्यार को समझा न जो ,किस काम का पाडित्य वो |
जो समय के यक्ष - प्रश्नों के न उत्तर दे सके ,
दृष्टि में मेरी भला किस काम का साहित्य वो |
रचनाकार - कमल किशोर "भावुक"
डूबने से जो बचाकर विश्व-हित की नाव को,
जवाब देंहटाएंनव सृजन का पथ दिखाए,बस यही साहित्य है|..
बहुत ही सुन्दर ... ओजस्वी ... भाव्पूर्म पंक्तियाँ हैं ... आनंद आ गया ...
बहुत ही सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंजो समय के यक्ष - प्रश्नों के न उत्तर दे सके ,
जवाब देंहटाएंदृष्टि में मेरी भला किस काम का साहित्य वो | ---सटीक..
जो समय के यक्ष - प्रश्नों के न उत्तर दे सके ,
जवाब देंहटाएंदृष्टि में मेरी भला किस काम का साहित्य वो |---बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ हैं
सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंनव सृजन का पथ दिखाए,बस यही साहित्य है...बिलकुल सही..
जवाब देंहटाएंजो समय के यक्ष प्रश्नों के न उत्तर दे सके .......................
जवाब देंहटाएंसाहित्य की स्तरीयता को बनाये रखने का खूबसूरत संदेश है यह कविता ,बधाई