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मंगलवार, 17 सितंबर 2013

रुबाइयां --डा श्याम गुप्त ..


शहीदों के लिए सिर्फ शम्मा जलाने से क्या होगा
साल में इक बार दिवस मनाने से क्या होगा|
बेहतर है प्रतिदिन चरागे-दिल जलाए जाएँ -
नक़्शे -कदम पे श्याम चल पायं तोअच्छा होगा|

घर हो, बाहर हो जंग हर जगह पे जारी है,
कहीं सांस्कृतिक हमला है कहीं आतंकी तैयारी है|
खुश नशी हैं श्याम ' जो देश की सरहद पे लडे-
अन्दर के दुश्मनों से लड़ें अब हमारी बारी है |

ऐसे भी होते हैं दीवाने हर  ज़माने में ,
गीत गाते हैं सचाई के हर ज़माने में |
उनकी फितरत में फरेवो-जफा होती ही नहीं -
जीते हैं नग्मे-वफ़ा , वेवफा  ज़माने में |

सो गया थककर के दिन,
रात के आगोश में |
जैसे इक नटखट सा बच्चा-
सोता मां की गोद में |


4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (18-09-2013) प्रेम बुद्धि बल पाय, मूर्ख रविकर है माता -चर्चा मंच 1372 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. चरागे-दिल जलता रहे..उम्दा नज़्म..

    जवाब देंहटाएं
  3. धन्यवाद अमृताजी,शास्त्रीजी एवं कालीपद जी....

    जवाब देंहटाएं

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