दुर्मिल सवैया ( 8 सगण l l S)
अधिकार मिले अति भाग खिले, नहिं दम्भ दिखे प्रण आज करो
करना नहिं शासन ताकत से , दिल पे दिल से बस राज करो
कब कौन कहाँ बिछड़े बिसरे , लघु कौन यहाँ ,गुरु कौन यहाँ
उसकी फुँकनी सुर साज रही , वरना हर साज त मौन यहाँ ||
प्रण आज करो सब एक रहें , नहिं भेद रहे तुझमें मुझमें
उसके शुभ अंश बँटे सब में , जल में थल में इसमें उसमें
दिन चार मिले कट तीन गये , बस एक बचा बरबाद न हो
किस काम क जीवन हाय सखे, यदि जीवन में मधु स्वाद न हो ||
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर ( मध्य प्रदेश)
वाह !!! बहुत ही बढ़िया रचना !
जवाब देंहटाएंRECENT POST : मर्ज जो अच्छा नहीं होता.
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें भाई जी-
वाह !!! बहुत ही बढ़िया रचना !
जवाब देंहटाएंwaah sabke dil ki bat ...
जवाब देंहटाएं---सुन्दर ..अति सुन्दर .....सवैया ....
जवाब देंहटाएं---बस अति- नियम का यही तो दोष है कि ..... त ( तो ) ... एवं क.( का ).. लिखना पड़ता है ........सायास अपभाषा....
वरना हर साज त मौन यहाँ
किस काम क जीवन हाय सखे